आओ ऊटी घूमने चलते हैं – सफ़रनामा By Rajesh Khare

लेखक राजेश खरे हाल ही में दिल्ली से दक्षिण भारत के फेमस हिल स्टेशन ऊटी घुमने गए थे । उन्होने अपनी इस यात्रा को लेखनी के माध्यम से इतनी खूबसूरती से सजा दिया है कि पढते समय आपको लगेगा कि आप भी ऊटी की सैर पर है । कैसे पहुंचे ऊटी , वहां पर कौन-कौन सी जगह है घुमने की , यह सब जानने के लिए पढ़िए उनके सफ़रनामा का पहला भाग....

राजेश खरे , वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी –उत्तर रेलवे

दिल्ली से चले हुये पूरे चौबीस घंटे हो चुके है, केरला एक्सप्रेस पाँच राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान ,मध्यप्रदेश, और महाराष्ट्र को पीछे छोड़कर आन्ध्र प्रदेश के वारंगल शहर से गुज़र रही है। दिल्ली की तपती और उमस भरी गरमी से थोड़ी राहत है। मौसम ख़ुशनुमा है। खिड़की से बाहर झाँकते हुये चारों ओर हरियाली दिखाई दे रही है। खेतों में किसान पूरे परिवार के साथ काम में जुटे हुये हैं।

हम शहरों में रहने वाले लोगों को किसानों की मेहनत का रत्ती भर भी अहसास नहीं होता कि जिस आलू या टमाटर को हम दिल्ली या किसी भी बड़े शहर में तीस रूपये किलो ख़रीदते है उसे वो किसान अपने पूरे परिवार के साथ लग कर कितनी मेहनत और तंगी उठाकर महाजन और बैंकों से क़र्ज़ लेकर उगाता है और फिर भी उसे उसकी मेहनत और लागत का समुचित मूल्य नहीं मिल पाता। कभी कभी तो वो लागत से कम क़ीमत पर भी बेचने को मजबूर हो जाता है और कभी क़र्ज़ से उबर न पाने की लिखित में आत्महत्या तक कर लेता है।

चलती ट्रेन से खींची तस्वीर

अभी हम बात कर रहे है आन्ध्र प्रदेश की खेती की, बरसात के कारण पेड़ – पौधों पर जवानी छाई हुयी है किसान खेतों में जुटे हुये हैं, खेतों में कोपलें निकली हुई है। फ़सल कौन सी है ये नहीं पता। ख़ास बात ये है कि खेतों में वो दृश्य दिख रहा है जो उत्तर भारत के खेतों से दशकों पहले ग़ायब हो चुका है। उत्तर भारत में खेतों में अब मानव से अधिक मशीन दिखती है और यहाँ पर मशीन से ज़्यादा मानव और उसकी सदियों पुरानी मशीन, जी हॉ, जो आपने प्रेमचंद और फणीश्वर के उपन्यासों और कहानियों में पढ़ा होगा और हमारी पीढ़ी के लोगों ने अपने बचपन में देखा होगा, राजनीति में जिसका कभी वर्चस्व था, हल और बैल के साथ खेत जोतता हुआ किसान।

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वारंगल से गाड़ी आगे चलते ही बाहर के दृश्य बदलने लगते है अभी तक जे हरियाली दिख रही थी अचानक ग़ायब हो गई है और सूखे खेत नज़र आने लगे है। बारिश के इंतज़ार में किसान खेतों की जुताई कर रहे है। पेड़ भी पानी का बेसब्री से प्रतीक्षा करते प्रतीत हो रहे है। रेल अपनी गति से खेत- खलिहानों को पार करती हुई चली जा रही है अपने गंतव्य की ओर। इस बीच कई स्टेशन निकल गये, दोपहर हो गई है और खाने तो लेकर बहस हो रही है कि ट्रेन से लेकर खाया जाये या बाहर से मँगाया जाये। नतीजा हमेशा की तरह विलोम में ही निकला और साहिबज़ादे ने इंटरनेट के माध्यम से चिकन बिरयानी और चिली चिकन का ऑर्डर कर दिया जो विजयवाडा पर हमें ट्रेन में ही सर्व कर दिया गया। रेलवे ने ये एक बड़ा काम किया है कि रास्ते में आप अपनी पसंद का खाना मँगा सकते है। चिकन बिरयानी और चिली चिकन खाकर जो नींद आई वो शाम को छह बजे के आस पास चाय वाले की “ चायायायआ” की आवाज़ से ही खुली।

शाम की चाय पीने के बाद अब रात के खाने की चिंता हमें तो नहीं थी लेकिन बाक़ी लोगों को तो खाना ही था और ये तय हो गया था कि ट्रेन का नहीं खायेगें।

अभी घर से बनाकर लाई हुई मसालेदार पूड़ी और आलू की सूखी सब्ज़ी बची हुई थी हमने तय किया की हम वही खायेंगे।

इसी बीच रेनीगुंटा पहुँच गये और स्टेशन से समोसे के साथ सांभर खाया। उत्तर भारत में समोसा चटनी, छोले, आलू की सब्ज़ी के साथ तो बहुत खाया लेकिन सांभर के साथ पहली बार खाया। खाने में मज़ा नहीं आया।

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रात को खाना खाकर जल्दी सोना था। ये यात्रा की दूसरी रात थी और सुबह पाँच बजे कोयम्बटूर उतरना था जहाँ से हमें मैटुपलायम की दूसरी ट्रेन पकड़नी थी जो वहाँ से सुबह सवा पाँच बजे चलती है। हमारे पास सिर्फ़ पन्द्रह मिनट का समय था अगर हमारी ट्रेन लेट हो गई तो अादि की यात्रा बस या टैक्सी से करनी पड़ती।

रात में मोबाईल में सुबह चार बजे का अलार्म लगाया और सो गये। सुबह उठने के चक्कर में रात को कई बार आँख खुली। नेशनल ट्रेन इंकवायरी की वेबसाइट पर देखा तो गाड़ी आधा घंटा लेट चल रही थी। अब निश्चित था कि कोयंबटूर से ऊटी टैक्सी से ही जाना पड़ेगा। लेकिन क़िस्मत में तो टॉय ट्रेन की सवारी लिखी ही थी जो अब तक बची हुई थी।

सभी तस्वीरें राजेश खरे के कैमरे से खींची गई है

केरल एक्सप्रेस सवा पाँच बजे के आस- पास कोयंबटूर पंहुची। स्टेशन पर उतर कर इंकवायरी से पता किया तो मालूम हुआ कि मैटुपलायम जाने वाली गाड़ी अभी प्लेटफ़ार्म नम्बर तीन पर खड़ी है। फटाफट लगभग दौड़ते हुये हम गाड़ी में बैठ गये।क़रीब पौने छह बजे हमारी गाड़ी मैटुपलायम के लिये रवाना हुई। सुबह सवा सात बजे मैटुपलायम से उदागमंडलम ( ऊटी) के लिये टॉय ट्रेन में हमारी चार सीटें फ़र्स्ट क्लास में रिज़र्व थीं जो वेटिंग से अब कंफ़र्म हो गई थीं ।

सफ़रनामा अभी जारी है…