समाजवादी चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर भी हो गए भाजपाई – पढ़िए एक पुराना किस्सा

ये किस्सा 1996 के लोकसभा चुनाव का है जब अटल-आडवाणी के सहयोग की वजह से चन्द्रशेखर बलिया से चुनाव जीत पाए थे । लेकिन अटल सरकार के विश्वास मत के दौरान चंद्रशेखर कुछ ऐसा बोल गए जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।

उमेश चतुर्वेदी , वरिष्ठ पत्रकार की कलम से

समय चक्र कैसा होता है? भारतीय शास्त्र कहते हैं कि इसे ज्ञानी अच्छी तरह समझते हैं..1996 के आम चुनाव सिर पर थे । लगता नहीं था कि तब बलिया से चंद्रशेखर जीत पाएंगे। उन दिनों जार्ज फर्नांडिस जनता दल से अलग हो चुके थे । एक शाम दिल्ली के पत्रकारीय गलियारों से खबर आई कि जार्ज साहब दिल्ली के 11 अशोक रोड स्थित भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय जा रहे हैं। पत्रकारों का हुजूम भी वहां पहुंच गया । जार्ज साहब ने तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की । इसी मुलाकात में समझ बनी कि भारतीय जनता पार्टी बलिया से अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी।

तब भारतीय राजनीति में भाजपा के उभार के आसार नजर आने लगे थे । चुनाव हुए और भारतीय जनता पार्टी ने बलिया से उम्मीदवार नहीं उतारा , जबकि रामकृष्ण मिश्र पार्टी की ओर से प्रबल दावेदार थे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी आम चुनावों में चंद्रशेखर का साथ दिया । हमारे एक मित्र तब प्रचारक थे । चंद्रशेखर का सहयोग वे पचा नहीं पाए लेकिन अनुशासन से बंधे थे।

आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 162 सीटों के साथ सबसे बड़ा दल बनकर उभरी…तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़े दल के नेता के नाते अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया..वाजपेयी ने सरकार भी बनाई..

माना जा रहा था कि चुनावों में परोक्ष समर्थन हासिल कर चुके चंद्रशेखर विश्वास मत के दौरान वाजपेयी सरकार का समर्थन करेंगे..लेकिन उन्होंने समर्थन नहीं किया..बल्कि विश्वास मत पर जारी बहस के दौरान वाजपेयी से सवाल ही उछाल दिया….पता नहीं क्यों गुरूदेव ने सरकार बना ली..

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इससे भारतीय जनता पार्टी के बलिया के कार्यकर्ता बहुत निराश हुए थे..उन्हीं चंद्रशेखर के बेटे हैं नीरज शेखर..चंद्रशेखर के निधन के बाद 2007 के उपचुनाव में उन्होंने बलिया के मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त को परास्त किया था…और 2009 के आम चुनाव में मनोज सिन्हा को… लेकिन 2014 में भरत सिंह के सामने हार गए..

वे ही नीरज भारतीय जनता पार्टी के हो गए हैं..पिता ने सहयोग लेकर भी पार्टी का साथ नहीं दिया और समय का चक्र देखिए कि बेटे को उसी भाजपा का अनुशासन स्वीकार करना पड़ा..