शुक्रिया इरफान खान,जाते-जाते यह समझाने के लिए कि जिंदगी केवल ब्लैक एंड व्हाइट में ही नहीं जी जाती

संतोष द्विवेदी मनुज, ब्रॉडकास्टर

अनन्त की सैर पर इरफान!

सिनेमा के बारे में मेरी थोड़ी बहुत समझ उसके कंटेंट भर तक सीमित है! तकनीकी पहलुओं पर नगण्य ही समझिये!

इसमे काम करने वाले अभिनेता/अभिनेत्री मुझे बस पसंद ही आये बाकी दूसरे किस्म की धारणा मैं कभी बनी नही!

इसका कारण शायद हमारी ट्रेनिंग के दौरान डेढ़ मिनट की वो शॉर्ट क्लिप थी,जिसमे लगा परिश्रम और समर्पण से इतना तो भान हो ही गया कि एक फ़िल्म में इससे हजारों गुना परिश्रम और समर्पण लगता है!

जो बहुत थोड़ी फ़िल्म मैंने देखी उसमे मुझे सब तरह की फिल्म्स पसन्द आई! मसलन मेरी च्वाइस धीरे धीरे व्यक्ति आधारित होती गई! जिसमें #इरफान उल्लेखनीय है! बाकी लोगो का जिक्र अभी समीचीन नही!

मुझे याद है इरफान का मैंने एक इंटरव्यू पढा था कहीं बहुत पहले! जिसके बाद उनके भीतर के आत्मसम्मान ने मेरे मन मे कहीं एक अलग जगह पुख्ता कर ली थी! उन्होंने किसी रिपोर्टर के जवाब में कहा था कि चौथे खान के बजाए आप मेरी पहचान इरफ़ान ही रखे, यही कहे वो बेहतर है!

आगे उन्होंने इसे ही जारी भी रखा!

बॉलीवुड को दूर से भी न जानने वाला मैं इतना तो समझता हूं कि खान के दरबारों की क्या महत्ता है वहाँ! ऐसे में वो चाहते तो जोर अपने ‘खान’ होने पर दे सकते थे, पर उन्होंने वो किया जो किसी स्वाभिमानी व्यक्ति से उम्मीद की जाती है!

आजकल के इस अल्ट्रा राजनीतिक परिदृश्य में जहां हर कोई किसी न किसी ‘तरफ़’ खड़ा दिखाई पड़ता है! इरफान हमे कला और अपने काम के साथ संजीदगी के साथ खड़े दिखाई देते है!

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हाल-फिलहाल में मैंने इरफान की “हिंदी मीडियम” देखी थी! पेरेंट्स के लिए स्कूलों में बच्चे का एडमिशन कैसे एक “हरकूलियन टास्क” है वो बड़े या मझोले किसी भी शहर से छिपा नही है! उसी के साथ मध्य और उच्च मध्य वर्ग के और भी आयामों को सामने लाने का उद्यम साबित हुई थी वो फ़िल्म! उस छोटे पर एक जरुरी सामाजिक पहलू पर बनी फिल्म ने खूब सुर्खियाँ बटोरी थी!

उससे पहले पान सिंह तोमर के किरदार को उन्होंने कैसे हम सबके बीच जीवंत कर दिया था, कौन नावाक़िफ़ है!

पहले पहल वैसे इरफान का वो छोटा रिचार्ज याद आता है! खैर!

इस अनिश्चित संसार मे रिटर्न टिकट कन्फर्म है! आज इरफान चले गए, कल हमे जाना है! उस जाने से पहले इरफान करोड़ो दिलों में सदा के लिए अमर हो गए, अपनी कला से! जिन कष्टों से वो कई साल से जूझ रहे थे आज उस त्रास की पूर्णाहुति हुई!

हम सबसे सीख सकते छही, इरफान हमे स्वाभिमान से जीना और एक निर्विवाद जीने की सीख दे कर गए है! सीखना है तो हम उनसे ये सीखे! क्योकि किसी से कुछ सीख नही सकते तो पसंदगी/नापसंदगी बेईमानी है!

बाकी देशभर में 800 से ज्यादा फिल्म्स बनती है, और वेब सीरीज की तो क्या कहें!

इरफान असल में आप गए नही, आप को जितना भी समय दिया ईश्वर ने आप उसका सदुपयोग करके, स्वाभिमान और खेमेबाजी से दूर रहने का सूत्र दे गए! अपनी अभिनय प्रतिभा के सामर्थ्य को सामने रखकर एक नया आयाम प्रस्तुत कर हमारे दिलों में सदा सदा के लिये समा गए!

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ईश्वर आप जैसे और लोगो को इस दुनिया मे भेजे, जिनके बहाने हम एक नजर आते है नही तो अलग करने अगणित है, अलग दिखने के बहाने अनन्त है!

आप उस अनन्त की सैर ओर चले गए, वो आपको अपनी शरण मे ले, और आपके परिवार को इस असीम वेदना को सहने की शक्ति प्रदान करें!

ॐ शांति !!
भावभीनी श्रद्धांजलि!