उद्धव ठाकरे ने दिया इस्तीफा

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने जा रहे उद्धव ठाकरे ने सामना के संपादक पद से इस्तीफा दे दिया है.

लंबे समय तक चले राजनीतिक उठा-पटक के दौर के बीच आखिरकार ठाकरे परिवार का कोई सदस्य पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने जा रहा है. हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने सामना के संपादक पद से इस्तीफा दे दिया है. सामना की कमान अब पूरी तरह से शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत को सौंप दी गई है .

यह तो आपको पता ही होगा कि सामना अपने संपादकीय को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहना वाला अखबार है. यह शिवसेना का मुखपत्र भी है. संजय राउत भी हाल के दिनों में शिवसेना के एक बड़े चेहरे के रुप में उभरे है.

सामना ने फिर से बीजेपी पर बोला हमला

वीरवार को एक बार फिर शिवसेना ने सामना संपादकीय के जरिए बीजेपी पर निशाना साधा है. सामन में लिखा गया कि , ”शिवसेना का मुख्यमंत्री और उसमें भी उद्धव ठाकरे इस पद पर विराजमान हो रहे हैं, ये महाराष्ट्र का भाग्य है. यह समारोह मराठी माणुस को धन्यता महसूस करानेवाला है. जो श्री उद्धव ठाकरे को पहचानते हैं, उनके मन में ये विश्वास है कि जब वे कोई जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो उसे पूरी शिद्दत से निभाते हैं.

उद्धव ठाकरे की विशेषता है कि बाहर तूफान होने के बावजूद वे शांत रहते हैं और शांत होने पर तूफान खड़ा कर देते हैं. देश के बड़े-बड़े नेता दिल्लीश्वरों के आगे घुटने टेक रहे हैं, ऐसे में उद्धव ठाकरे किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके. स्वाभिमान को गिरवी नहीं रखा और जिन लोगों ने बालासाहेब की साक्षी में ‘झूठ’ बोलने का प्रयास किया, उस ढोंग से हाथ नहीं मिलाया. ‘कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना की सरकार तीन पैरों पर खड़ी है और ये नहीं टिकेगी’, ऐसा शाप देवेंद्र फडणवीस ने शुभ मुहूर्त पर दिया है. लेकिन ये उनका भ्रम है.

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ये सरकार राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं बल्कि महाराष्ट्र और विकास के मुद्दों पर बनी है तथा राज्य के विकास के लिए तीनों पार्टियों में कोई मतभेद नहीं है. शरद पवार जैसे अनुभवी मार्गदर्शक हमारे साथ हैं. तीनों पार्टियों में प्रशासनिक जानकारी रखनेवाले लोगों की फौज है. मुख्य बात ये है कि किसी के मन में एक-दूसरे के प्रति मैल नहीं है. सरकार अपना काम करे और गत चार दिनों में जो कुछ हुआ, उस कीचड़ में पत्थर न फेंकते हुए विरोधी दल सकारात्मक नीति अपनाए. लोकतंत्र के यही संकेत हैं. दहशत पैदा करके सरकार बनाने और गिराने का खेल देश में गत 5 साल चला. महाराष्ट्र इन सब पर भारी पड़ गया.

मराठी माणुस आलसी नहीं है और वह व्यर्थ अपेक्षा भी नहीं रखता. हालांकि उसे झूठ और ढोंग से चिढ़ है. उसी चिढ़ से ही आज के सरकार की अभिमान की ज्वाला का जन्म हुआ है. महाराष्ट्र धर्म व्यापक है. इसी महाराष्ट्र धर्म से शिवराय का स्वराज्य अवतरित हुआ. वो स्वराज्य सबका था. उद्धव ठाकरे की नई सरकार उसी महाराष्ट्र धर्म का पालन करेगी. महाराष्ट्र धर्म की नई सरकार आई है. जो कहते थे ‘देखते हैं वै’से आती है’, वे भी महाराष्ट्र धर्म का मर्म जांच लें. उद्धव की सरकार शुरू हो रही है. उन्हें शुभकामनाएं! . “