साकार होनी शुरू हो गई ‘गांधी के भारत’ की कल्पना – डॉ. मोहन भागवत

नई दिल्ली।  गांधी स्मृति स्थित कीर्ति मंडल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत की पुस्तक ‘गांधी को समझने का यही समय’ का लोकार्पण किया। इस मौके पर डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि ‘गांधी जी को समझने का यही समय’, यही समय क्यों,  इस पर नज़र गयी, साम्प्रदायिक दूरियां, नीतियों का ह्रास, ये आज की सरकार के संदर्भ में नहीं है, हिन्द स्वराज पढ़ने के बाद ये पता चलता है कि अंग्रेजों को भगाने के बाद कैसा भारत होगा, इसकी कल्पना गांधी जी के मन में थी। इसीलिए गांधी को आज भी आदर और सम्मान से याद करते हैं।

सरसंघचालक ने कहा कि ये महात्मा गांधी को समझने का सही समय इसलिए है कि आजादी के बाद भी सभी समस्याएं बनी हुई हैं। ये बात सही है कि “गांधी जी की कल्पना का भारत आज नहीं है” लेकिन आज पूरे देश में घूमने के बाद मैं ये कह सकता हूं कि गांधी जी की कल्पना का भारत अब साकार होना शुरू हो गया है।

डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि महात्मा गांधी ने कभी भी लोकप्रियता और सफलता और असफलता की परवाह नहीं की। अन्तिम व्यक्ति का हित विकास की कसौटी है- ये उनका प्रयोग था और जब कभी गड़बड़ी हुई प्रयोग में तो उन्होंने माना कि ये तरीका गलत था। गांधी जी की प्रामाणिकता के पाठ को हमें आज से शुरू करना चाहिए। डॉ. हेडगेवार जी ने कहा था गांधीजी के जीवन का अनुसरण करना चाहिये, सिर्फ स्मरण नहीं।

उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा में ये नहीं बताया जाना चाहिये कि ये हमारे पक्ष का है और ये विपक्ष का, शिक्षा में सत्यपरकता होनी चाहिये। मोहन भागवत ने कहा कि पर्याप्त प्रामाणिक होने के लिए बूंद-बूंद का प्रयास करना होगा खासकर नई पीढ़ी को।

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परिस्थितियां बदलेंगी, मुझे उम्मीद है कि सारा रंग एक होगा। गांधीजी के आन्दोलन में यदि गड़बड़ी होती थी तो वह प्रायश्चित करते थे। आज के आन्दोलन में कोई प्रायश्चित करने वाला नहीं है। डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि गांधी जी को जो परिस्थिति मिली और जो समाज मिला तब उसके अनुसार उन्होंने सोचा, आज जो परिस्थिति है उसमें हम कार्बन कॉपी नहीं कर सकते,  गांधी होते तो वो भी रोक देते। जो निर्भय है उसे ही सत्य मिलता है। गांधी जी की सत्यनिष्ठा निर्विवाद है, जो उनका बड़ा विरोध करने वाला है वह भी उन पर सवाल नहीं उठा सकता। गांधी जी की विचार दृष्टि का मूल शुद्ध भारतीय था, इसलिए उन्हें अपने हिंदू होने पर कभी लज्जा महसूस नहीं हुई। उन्होंने स्वयं को शुद्ध सनातनी हिंदू बताया।  उनका विचार था अपनी श्रद्धा पर अडिग रहो और सभी धर्मो का सम्मान करो।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जाने माने संविधान विशेषज्ञ पद्मविभूषण डॉ. सुभाष कश्यप ने कहा कि डॉ. राजपूत ने गांधी के जीवन का सार इस पुस्तक में रख दिया है। किताब के शीर्षक से ही पता चलता है कि लेखक मानते हैं कि गांधी जी अब भी प्रासंगिक और सामयिक हैं। पूरी पुस्तक सकारात्मक है। डॉ. राजपूत कर्मठ व्यक्ति हैं…लेकिन मैं ये नहीं जानता था कि वो इतने समर्पित गांधीवादी भी हैं। पुस्तक पढ़कर लगता है कि वो गांधीभक्त हैं। गांधी की महानता से कोई भी इंकार नहीं कर सकता। गांधी जी का पूरा जीवन महाभारत जैसा महाकाव्य था,  जिसमें सबकुछ अच्छा-बुरा पाया जा सकता है। गांधी जी वास्तव में महापुरुष थे। इस समय सबसे बड़ा संकट चारित्रिक ह्रास का है। सत्ता के लिए, सम्पदा के लिए औऱ सफलता के लिए हम कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। अगर आज गांधी जी होते स्वच्छता से काफी प्रसन्न होते लेकिन वे यह प्रश्न अवश्य करते कि ये स्वच्छता अभियान राजनीति में कब चलेगा ? गांधी जी कहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जो मनुष्य का निर्माण करे।

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इस मौके पर पुस्तक के लेखक प्रख्यात शिक्षाविद् प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि महात्मा गांधी पर बहुत लिखा गया है और आने वाले समय में बहुत लिखा जाएगा। गांधी का चिंतन बहुत बड़ा है। गांधी जी भारत की प्राचीन परंपरा में  बंधुत्व के तत्व का अध्ययन किया। सत्य औऱ अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रण किया। गांधी जी महामानव थे। रंगभेद के बड़े संघर्ष में गांधी जी सफल हुए।

पुस्तक का प्रकाशन किताबघर ने किया है। किताबघर प्रकाशन के प्रबंधक सत्यव्रत शर्मा ने कार्यक्रम में आए अतिथियों का आभार व्यक्त किया।