आर्टिकल 370 को समाप्त कर सरकार ने अंबेडकर, पटेल और मुखर्जी का सपना साकार कर दिया- अश्विनी उपाध्याय

आर्टिकल 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले अश्वनी उपाध्याय के मुताबिक 370 को तो जाना ही था . पढ़िए कैसे ...

आर्टिकल 370 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाले भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 को समाप्त कर अंबेडकर , पटेल और मुखर्जी का सपना साकार कर दिया.

अपनी याचिका में उपाध्याय ने दलील दी थी कि भारतीय संविधान का भाग- XXI अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रावधान से संबंधित है और आर्टिकल 370 इसका हिस्सा है. संविधान में ही लिखा गया है कि आर्टिकल 370 एक अस्थायी प्रावधान है और यह तब तक लागू था जब तक जम्मू कश्मीर की संविधान सभा का अस्तित्व था.

यह बात संविधान सभा में हुई बहस में ही नहीं बल्कि अनुच्छेद 370(3) की भाषा से भी स्पष्ट हो जाता है. इसलिए आज की तारीख में आर्टिकल 370 पूरी अवैध और असंवैधानिक है. इतना ही नहीं यह आर्टिकल पूरी तरह से मनमाना और मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला है.

आर्टिकल 370 कानून के समक्ष समानता, कानून का समान संरक्षण, सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर, शैक्षणिक संस्थान की स्थापना का अधिकार, व्यापार / व्यवसाय का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, जानने का अधिकार, जो कि आर्टिकल 14, 15, 16, 19 और 21 के तहत देश के सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है, का भी उल्लघंन करता है. इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर का संविधान भी पूरी तरह अवैध और अमान्य है क्योंकि इसे भी राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है जो कि भारतीय संविधान के अनुसार जरूरी है.

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उपाध्याय का कहना है कि आर्टिकल 370 केवल जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा तक ही मान्य था. इसलिए इसे 1954 में ही हट जाना चाहिए था या अधिकतम इसे 1957 तक बढ़ा सकते थे जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा भंग हुई थी. यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुसार भी जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि भारत का संविधान सर्वोपरि है और भारत एक संप्रभु देश है न कि जम्मू कश्मीर राज्य. यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि आर्टिकल 370 पर हुई बहस से यह स्पष्ट है कि उक्त प्रावधान केवल एक अस्थायी व्यवस्था है. इसलिए यदि केंद्र सरकार आर्टिकल 370 को समाप्त नहीं करता तो सुप्रीम कोर्ट इसे  मनमाना और अवैध घोषित देता. आर्टिकल 370 का निरंतर अस्तित्व संविधान की संरचनात्मक पवित्रता का उल्लंघन करता है और यह वास्तव में भारतीय संविधान के साथ एक धोखा है.

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उपाध्याय की दलील है कि भारतीय संविधान की संघीय संरचना केंद्रीय विधानमंडल और केंद्र सरकार की ओर मजबूती के साथ झुकती हैं. संविधान के भाग XXI को विशेषतौर पर ऐसा बनाया गया है कि यह लोकतंत्र को संघीय घटकों के साथ एक सच्चे संघो के राज्य में परिवर्तित कर सके और झुकाव केंद्र की ओर हो.  भारतीय संविधान में यह सुनिश्चित किया गया था कि संविधान की सर्वोच्चता कभी कम न हो. भले ही कुछ ऐसे प्रावधान किए जाने की मांग की गई थी, जो अस्थायी रूप से लेखपत्र के बचे भाग के साथ संघर्ष में आ सकते हैं. आर्टिकल 370 एक ऐसा प्रावधान है जो पूरे संविधान में एक गैर-विरोधात्मक विषय के साथ शुरू होता है. दूसरा उक्त प्रावधान को एक विशेष भाग में शामिल किया गया था जिसे अस्थायी और परिवर्तनीय प्रावधान शीर्षक दिया गया था. तीसरा अनुच्छेद 370 के लिए संक्षिप्त नोट स्पष्ट रूप से बताता है कि संविधान सभा द्वारा इस अनुच्छेद को  “जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान” के इरादे को स्पष्ट करता है. इससे स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 समाप्त कर संविधान की भावना का सम्मान किया है.

केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 को संसद में एक प्रस्ताव द्वारा हटा दिया है. इसको लेकर संसद में काफी हंगामा भी हुआ. आपको बता दें कि इस अनुच्छेद को लेकर काफी लंबे समय से खींचतान होती रही है. विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अपने हितों के लिए कभी इस पर कोई कड़ा फैसला लेने की हिम्मत नहीं दिखाई. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में इसको लेकर जो कदम बढ़ाया गया है उसके दूरगामी परिणाम सकारात्मक तौर पर सामने दिखाई देंगे.

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आईए आर्टिकल 370 के बारे में समझते हैं.

भारतीय संविधान का आर्टिकल 370 एक ‘अस्‍थायी प्रबंध’ के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है. भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत जम्मू और कश्मीर को यह अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध वाले राज्य का दर्जा हासिल होता है.

भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून इस राज्य में लागू नहीं होते हैं. मिसाल के तौर पर 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था.

संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए

जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था. शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्‍थायी रूप में ना किया जाए

उन्होंने राज्य के लिए कभी न टूटने वाली, ‘लोहे की तरह स्वायत्ता’ की मांग की थी जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था. इस आर्टिकल के मुताबिक रक्षा, विदेश से जुड़े मामले, वित्त और संचार को छोड़कर बाकी सभी कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य से मंजूरी लेनी पड़ती थी

राज्य के सभी नागरिक एक अलग कानून के दायरे के अंदर रहते हैं, जिसमें नागरिकता, संपत्ति खरीदने का अधिकार और अन्य मूलभूत अधिकार शामिल हैं. इसी आर्टिकल के कारण देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं.

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जम्मू कश्मीर का नागरिक किसी अन्य राज्य से लोकसभा चुनाव लड़ सकता है लेकिन अन्य राज्यों के नागरिक यहां पार्षद या प्रधान भी नहीं बन सकते हैं

आर्टिकल 370 के कारण भ्रष्टाचार, हवाला कारोबार, जमाखोरी, मिलावटखोरी, तस्करी, कालाधन, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति विरोधी कानून कश्मीर में लागू नहीं होता था.