भारत की नई पीढ़ी, रामायण-महाभारत और हमारी सनातन संस्कृति

 

संतोष द्विवेदी मनुज, ब्रॉडकास्टर

हम सब जानते है कि दूरदर्शन पर रामायण, महाभारत का पुनः प्रसारण हो रहा है! हम सब देख भी रहे है! ये एक ऐसा समय है जब हमारा देश ही नही, न जाने कितने देशों में lockdown चल रहा है! विश्व युद्ध के बाद शायद कोरोना महामारी मानवता के लिए सबसे बड़ा संकट बनकर उभरा है!

इस बीच जो एक अच्छी चीज मेरे संज्ञान में आई है कि, आजकल दुनिया भर के Social Media Challenges के बीच एक किस्म का शास्त्रार्थ भी चल रहा है!

लोग रामायण के महत्वपूर्ण चरित्रों राम, रावण, सीता,हनुमान, भरत,लक्ष्मण, मंदोदरी, कुंभकर्ण, मेघनाद, विभीषण आदि के बहाने रामायण की विभिन्न घटनाओं तो वहीं पांडवों-कौरवों,कृष्ण, भीष्म, द्रौपदी आदि चरित्रों के माध्यम से इनकी विभिन्न बड़ी से बड़ी छोटी से छोटी घटनाओं के आज के परिदृश्य में चर्चा कर रहे है!

सबसे बढ़कर राम, कृष्ण, भीष्म, युधिष्ठिर आदि चरित्रों पर प्रश्न खड़े कर रहे है!

वैज्ञानिकता की कसौटी पर परखे तो, हमारी प्रश्न करने की यह प्रवृत्ति नई नही है, ये सनातन संस्कृति के शाश्वत मूल्यों का अनिवार्य पहलू सदैव से रहा है! हमने कहानियों में पढा है कुछ फिल्मों में भी देखा है कि सिर्फ बाहुबल के साथ साथ, शास्त्रार्थ की भी परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर ही किसी राजकुमार को राजा का सिंहासन दिया जाता था!

शास्त्रार्थ करनेकी यह सहजात वृत्ति ही सनातन संस्कृति में विद्यमान वैज्ञानिकता का आधार रहा है! हाल ही में हमने देखा बाजीराव के रोल में रणवीर सिंह और बाहुबली में अमरेंद्र बाहुबली शास्त्रार्थ की परीक्षा भी देते है!

सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखे तो –

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सोशल मीडिया में मर्यादा पुरीषोत्तम राम, कर्म योगी श्रीकृष्ण के जीवन चरित के बहाने आदर्शवाद और यथार्थवाद को फिर से कसौटी पर कसा जा रहा है!

माता सीता और द्रौपदी ने स्त्री विमर्श को नए आयाम दिए है! तो वहीं सबरी, वानर,केवट आदि के माध्यम से समाज के सामान्य वर्ग की भी प्रासंगिकता को रेखाँकित करता है!

प्रश्न करने की इस आदत तो सामान्य आदत नही माना जाना चाहिये, हम आज भी अपने मूल्यों को कसौटी पर परखते है इसीलिए समय के साथ वो प्रासंगिक बने हुए है! उनमें वैज्ञानिकता का पुट है!

मुझसे अगर कोई पूछे तो मैं तो यही कहूंगा कि सनातन संस्कृति की सबसे बड़ी देन मानवता को प्रश्न करने की परम्परा देना है, शंका-समाधान करने की ओर उन्मुख करना है! हम आभारी है अपने पूर्वजों के जिन्होंने उसे हमे आत्मसात करवाया, अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसे अनवरत बढाते जाए!

संस्कृति और सभ्यता एक दिन में न बनते है न बिगड़ते है, समूची मानवता एक कुटुंब मानने वाली सनातन संस्कृति के इन शाश्वत मूल्यों को समझना चाहिए, सीखना चाहिए!

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !!