बिहार में चौथे चरण के लोकसभा चुनाव में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा लगी दांव पर

चौथे चरण के मतदान के तहत बिहार में 29 अप्रैल को 5 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है । इन पांचों सीटों पर 86 लाख के लगभग मतदाता 66 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे।

बेगूसराय लोकसभा सीट पर एक तरफ बीजेपी के हिन्दूवादी चेहरे गिरिराज सिंह है जो अपने बयानों से यहां राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व की भावना को जगाकर एक बार फिर से इस सीट को जीतकर बीजेपी के खाते में डालने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सीपीआई के इस गढ़ को फिर से हासिल करने की कोशिश में लगे हैं कन्हैया कुमार। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से राजनीति का पाठ सीखने वाले कन्हैया कुमार की चर्चा देश-विदेश में हो रही है और जावेद अख्तर जैसे नामी-गिरामी लोग उनके चुनाव प्रचार के लिए बेगूसराय पहुंच रहे हैं। इन दोनों के बीच तीसरे उम्मीदवार भी है जिनकी बहुत ज्यादा चर्चा भले ही नहीं हो रही हो लेकिन जमीन पर काफी मजबूत है और 2014 में वो बीजेपी से कम अंतर से हार कर दूसरे नंबर पर रहे थे। हम बात कर रहे हैं लालू यादव की पार्टी के उम्मीदवार तनवीर हसन की ।

उजियारपुर संसदीय क्षेत्र में दो अध्यक्षों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। एक तरफ रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा है तो दूसरी तरफ बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय है। कुशवाहा ने साथी ही नहीं बल्कि लोकसभा सीट भी नई चुनी है। 2014 में बिहार के कराकाट से ही लोकसभा चुनाव जीते कुशवाहा इस बार राजद के वोट बैंक के सहारे उजियारपुर से चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं। बिहार प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय को जहां मोदी नाम के सहारे फिर से अति पिछड़ी जातियों का वोट मिलने की उम्मीद है। वहीं कुशवाहा आरजेडी वोट बैंक के सहारे जीत हासिल करने की जुगत में है।

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दरभंगा जिसे मिथिलांचल का प्रमुख सीट माना जाता है पर इस बार भी सीधा मुकाबला पिछले कई चुनावों की तरह आरजेडी और बीजेपी के बीच ही है । बीजेपी ने पूर्व अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर और यहां से वर्तमान सांसद कीर्ति आजाद की बजाय गोपाल जी ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं आरजेडी ने अली अशरफ फातमी की बजाय अब्दुलबारी सिद्दीकी पर दांव लगाया है। उम्मीदवार भले ही बदल दिए गए हो लेकिन जातीय कार्ड पुराना ही है। इस सीट पर सबसे अधिक 3.5 लाख मुस्लिम मतदाता है। ब्राह्मण और यादव मतदाता 3-3 लाख के लगभग है। सीधी लड़ाई में यहां दलित और पिछड़े मतदाताओं की भूमिका भी जीत-हार में महत्वपूर्ण हो जाती है।

मुंगेर संसदीय सीट पर 2014 में एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर लोजपा की वीणा सिंह को जीत हासिल हुई थी लेकिन इस बार यह सीट जेडी-यू के खाते में चली गई है। इस सीट पर नीतीश कुमार ने अपने करीबी राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है तो महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस उम्मीदवार नीलम देवी चुनाव लड़ रही हैं। नीलम देवी बिहार के बाहुबली नेता अनंत सिंह की पत्नी है।  इस सीट पर सबसे ज्यादा 6.4 लाख के लगभग अति पिछड़ी जाति के मतदाता हैं। कुर्मी वोटरों की तादाद 2.7 लाख और भूमिहार की 2.2 लाख है। यही वजह है कि दोनो ही भूमिहार उम्मीदवार अपनी जाति के वोट को हर हाल में हासिल करने के साथ-साथ दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने का भरपूर प्रयास भी कर रहे हैं।

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समस्तीपुर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और इस पर राम विलास पासवान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। क्योंकि यहां से एनडीए उम्मीदवार के तौर पर फिर से उनके भाई रामचन्द्र पासवान ही चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल 7 हजार वोटों से हारे डॉ अशोक कुमार से है। कांग्रेस उम्मीदवार अशोक कुमार को इस बार महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर आरजेडी और उपेन्द्र कुशवाहा के समर्थकों का वोट मिलने की उम्मीद है । जबकि रामचन्द्र पासवान जेडी-यू के एनडीए में आने  की वजह से अपनी जीत तय मान कर चल रहे हैं।