नड्डा ने एक वीडियो बयान जारी कर कहा, ” संदेशखाली में महिलाओं की इज्जत-आबरू और उनकी जमीनें बचाने के लिए वहां गई जांच एजेंसियों के अधिकारियों पर भी घातक हमला किया गया।ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है ? जहाँ रवींद्र संगीत गूंजना चाहिए था, वहां बम-पिस्तौल मिल रहे हैं।”
जेपी नड्डा के बोल —
“मैं आज समाचार पढ़ रहा था कि संदेशखाली में तलाशी के दौरान CBI को तीन विदेशी रिवॉल्वर, पुलिस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक रिवॉल्वर, एक विदेशी पिस्तौल, बंदूकें, कई गोलियां और कारतूस बरामद किये गए।संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए NSG कमांडो को भी उतरना पड़ा। इसी से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने किस तरह अराजकता फैला रखी है ?”
नड्डा ने ममता बनर्जी पर बड़ा आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि, “क्या ममता बनर्जी जनता को डराकर, धमका कर, उनकी जान लेकर चुनाव जीतेगी ? क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रबीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदो जैसे मनीषियों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी ? ममता दीदी, अगर आपको ऐसा लगता है कि आप ऐसा करके चुनाव जीतोगी तो ये आपकी भूल है। जनता आपको इसका करारा जवाब देगी।”
]]>महाराष्ट्र के कोल्हापुर में आयोजित जनसभा में लोगों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इंडी अघाड़ी वोटबैंक की राजनीति में इतना गिर गया है कि, शिवाजी महाराज की धरती पर ये औरंगजेब को मानने वालों से मिल गए हैं।महाराष्ट्र की ये धरती सामाजिक न्याय की प्रतीक है। लेकिन कांग्रेस और इंडी अघाड़ी ने सामाजिक न्याय की हत्या करने की भी ठान ली है।
मोदी ने कहा कि हमेशा बाबा साहब का अपमान करने वाली कांग्रेस अब दलितों-पिछड़ों के आरक्षण पर डाका डालने की तैयारी में है। कांग्रेस और इंडी अघाड़ी का एक ही एजेंडा रहा है- सरकार बनाओ, नोट कमाओ ! हमारी सरकार ने पहली बार अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया। हमने महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप्स का बड़ा आंदोलन खड़ा किया।
रैली के दौरान मंच पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले, कोल्हापुर लोकसभा प्रत्याशी संजय मांडलिक, हातकणंगले लोकसभा प्रत्याशी धैर्यशील संभाजीराव माने सहित अन्य पदाधिकारीगण उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोल्हापुर को महाराष्ट्र का फुटबॅाल हब कहा जाता है और फुटबॅाल यहां के युवाओं में बहुत प्रचलित है। फुटबॅाल की भाषा में कल दूसरे चरण का मतदान पूरा होने के बाद भाजपा और एनडीए 2-0 से आगे चल रहे हैं।मोदी ने बताया कि इंडी अलायंस के लोग कह रहे हैं कि इनकी सरकार बनी तो ये लोग सीएए कानून रद्द कर देंगे। जिन इंडी अलायंस वालों के तीन अंको में सीट जीतने के लाले पड़े हैं, वह क्या सरकार के दरवाजे तक भी पहुंच सकते हैं? इंडी अलायंस के लोग ऐसा फार्मूला बना रहे हैं कि हर साल एक नया पीएम और इन्हें यदि 5 साल मौका मिले तो 5 प्रधानमंत्री बनाएंगे। कांग्रेस को अब इसकी आदत हो गई है, कर्नाटक में इनकी सरकार बनी ढा़ई साल एक मुख्यमंत्री और ढ़ाई साल के बाद जो इनका उपमुख्यमंत्री है वो सीएम बनता है और यही फार्मूला इन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बनाया था। 5 सालों में 5 प्रधानमंत्री बनाने वाले इन लोगों को यह देश कभी भी सहने वाला नहीं है और इसीलिए ये लोग देश पर अपना गुस्सा उतार रहें हैं। कर्नाटक और तमिलनाडु में इंडी अलायंस के ये लोग दक्षिण भारत को तोड़कर अलग देश बनाने की मांग कर रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती कांग्रेस के ऐसे एजेंडे को कभी स्वीकार नहीं करेगी।
मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने यह भी ऐलान किया है कि आपकी जो भी जमा पूँजी है वह पूरी की पूरी लोगों की संतानों को नहीं मिलेगी। लोगों के न रहने पर उनकी पैतृक कमाई में से आधा हिस्सा कांग्रेस विरासत टैक्स लगाकर वसूल करना चाहती है। लेकिन कांग्रेस के ऐसे सपने कभी पूरा नहीं हो सकते हैं। महाराष्ट्र बाबा साहेब अंबेडकर, छत्रपती साहू जी महाराज और ज्योतिबा फुले की धरती है। महाराष्ट्र की यह धरती सामाजिक न्याय का प्रतीक है, लेकिन कांग्रेस और इंडी गठबंधन ने सामाजिक न्याय की हत्या करने की ठान ली है। हमेशा बाबा साहेब का अपमान करने वाली कांग्रेस अब दलितों और पिछड़ों की के आरक्षण छीनने की साजिश रच रही है। बाबा साहब अंबेडकर ने देश के संविधान में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि भारत में धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं होगा। मगर कांग्रेस पूरे देश में धर्म आधारित आरक्षण के लिए जोर लगा रही है। कांग्रेस कर्नाटक के आरक्षण मॉडल को महाराष्ट्र सहित पूरे देश में लागू करना चाहती है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण से चोरी कर, धर्म के आधार पर विशेष समुदाय को देने का षड्यन्त्र किया है। कांग्रेस ने रातों-रात एक कागज पर ठप्पा लगाकर, एक वर्ग विशेष को ओबीसी बना दिया। कांग्रेस ने ओबीसी के हक पर डाका डाला है और ये लोग पूरे देश में भी यही करना चाहते हैं। 2012 में यूपीए सरकार ने ये कोशिश की थी, लेकिन तब ये सफल नहीं हो पाए थे, इसीलिए कांग्रेस अब संविधान बदलकर दलित-पिछड़ों का आरक्षण धर्म के आधार पर बांटना चाहती है। जिन लोगों ने कर्नाटक में पिछड़ों का आरक्षण छीना है उन्हें देश में बिल्कुल भी सफलता नहीं मिलनी चाहिए।
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पूनम महाजन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “10 वर्षों तक एक सांसद के रूप में मुंबई उत्तर मध्य लोकसभा क्षेत्र की सेवा का मौक़ा देने के लिए बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद। मुझे एक सांसद ही नहीं बल्कि एक बेटी की तरह भी स्नेह देने के लिए मैं क्षेत्र की परिवार समान जनता की सदैव ऋणी रहूँगी, और यही आशा करूंगी कि यह रिश्ता हमेशा बना रहेगा। मेरे आदर्श, मेरे पिता स्वर्गीय प्रमोद महाजन जी ने मुझे ‘राष्ट्र प्रथम, फिर हम’ का जो मार्ग दिखाया, मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि आजीवन उसी मार्ग पर चल सकूं। मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण सदैव इस देश की सेवा को समर्पित रहेगा। जय हिंद, जय महाराष्ट्र! ”
बीजेपी ने शनिवार को महाराष्ट्र के मुंबई उत्तर मध्य लोकसभा क्षेत्र से पूनम महाजन का टिकट काट कर प्रसिद्ध एडवोकेट उज्ज्वल निकम को पार्टी का उम्मीदवार बनाया है।
]]>22 जनवरी की इस तारीख को, प्राण प्रतिष्ठा समारोह के इस ऐतिहासिक दिन को राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक और आधुनिक भारतीय समाज द्वारा भारत के आचरण के मर्यादा की जीवन दृष्टि की स्वीकृति बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक लेख लिखा है।
पढ़िए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का पूरा लेख
हमारे भारत का इतिहास पिछले लगभग डेढ़ हजार वर्षों से आक्रांताओं से निरंतर संघर्ष का इतिहास है। आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना और कभी-कभी (सिकंदर जैसे आक्रमण) अपना राज्य स्थापित करने के लिए होता था। परंतु इस्लाम के नाम पर पश्चिम से हुए आक्रमण यह समाज का पूर्ण विनाश और अलगाव ही लेकर आए। देश-समाज को हतोत्साहित करने के लिए उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करना अनिवार्य था, इसलिए विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में मंदिरों को भी नष्ट कर दिया। ऐसा उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि अनेकों बार किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था ताकि भारतीय स्थायी रूप से कमजोर हो जाएँ और वे उन पर अबाधित शासन कर सकें।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर का विध्वंस भी इसी मनोभाव से, इसी उद्देश्य से किया गया था। आक्रमणकारियों की यह नीति केवल अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए थी।
भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, परन्तु विश्व के शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के लिए आक्रामक होकर ऐसे कुकृत्य किये हैं। परंतु इसका भारत पर उनकी अपेक्षानुसार वैसा परिणाम नहीं हुआ, जिसकी आशा वे लगा बैठे थे। इसके विपरीत भारत में समाज की आस्था निष्ठा और मनोबल कभी कम नहीं हुआ, समाज झुका नहीं, उनका प्रतिरोध का जो संघर्ष था वह चलता रहा। इस कारण जन्मस्थान बार-बार पर अपने आधिपत्य में कर, वहां मंदिर बनाने का निरंतर प्रयास किया गया। उसके लिए अनेक युद्ध, संघर्ष और बलिदान हुए। और राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदुओं के मन में बना रहा।
1857 में विदेशी अर्थात ब्रिटिश शक्ति के विरुद्ध युद्ध योजनाएं बनाई जाने लगी तो उसमें हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर उनके विरुद्ध लड़ने की तैयारी दर्शाई और तब उनमें आपसी विचार-विनिमय हुआ। और उस समय गौ–हत्या बंदी और श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति के मुद्दे पर सुलह हो जाएगी, ऐसी स्थिति निर्माण हुई। बहादुर शाह जफर ने अपने घोषणापत्र में गौहत्या पर प्रतिबंध भी शामिल किया। इसलिए सभी समाज एक साथ मिलकर लड़े। उस युद्ध में भारतीयों ने वीरता दिखाई लेकिन दुर्भाग्य से यह युद्ध विफल रहा, और भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली, ब्रिटिश शासन अबाधित रहा, परन्तु राम मंदिर के लिए संघर्ष नहीं रुका।
अंग्रेज़ों की हिंदू मुसलमानों में “फूट डालो और राज करो” की नीति के अनुसार, जो पहले से चली आ रही थी और इस देश की प्रकृति के अनुसार अधिक से अधिक सख्त होती गई। एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने संघर्ष के नायकों को अयोध्या में फाँसी दे दी और राम जन्मभूमि की मुक्ति का प्रश्न वहीं का वहीं रह गया। राम मंदिर के लिए संघर्ष जारी रहा।
1947 में देश को स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब सर्वसम्मति से सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, तभी ऐसे मंदिरों की चर्चा शुरू हुई। राम जन्मभूमि की मुक्ति के संबंध में ऐसी सभी सर्वसम्मति पर विचार किया जा सकता था, परंतु राजनीति की दिशा बदल गयी। भेदभाव और तुष्टीकरण जैसे स्वार्थी राजनीति के रूप प्रचलित होने लगे और इसलिए प्रश्न ऐसे ही बना रहा। सरकारों ने इस मुद्दे पर हिंदू समाज की इच्छा और मन की बात पर विचार ही नहीं किया। इसके विपरीत, उन्होंने समाज द्वारा की गई पहल को उध्वस्त करने का प्रयास किया। स्वतन्त्रता पूर्व से ही इससे संबंधित चली आ रही कानूनी लड़ाई निरंतर चलती रही। राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए जन आंदोलन 1980 के दशक में शुरू हुआ और तीस वर्षों तक जारी रहा।
वर्ष 1949 में राम जन्मभूमि पर भगवान श्री रामचन्द्र की मूर्ति का प्राकट्य हुआ। 1986 में अदालत के आदेश से मंदिर का ताला खोल दिया गया। आगामी काल में अनेक अभियानों एवं कारसेवा के माध्यम से हिन्दू समाज का सतत संघर्ष जारी रहा। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला स्पष्ट रूप से समाज के सामने आया। जल्द से जल्द अंतिम निर्णय के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने के लिए आगे भी आग्रह जारी रखना पड़ा। 9 नवंबर 2019 में 134 वर्षों के कानूनी संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सत्य और तथ्यों को परखने के बाद संतुलित निर्णय दिया। दोनों पक्षों की भावनाओं और तथ्यों पर भी विचार इस निर्णय में किया गया था। कोर्ट में सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद यह निर्णय सुनाया गया है। इस निर्णय के अनुसार मंदिर के निर्माण के लिए एक न्यासी मंडल की स्थापना की गई। मंदिर का भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को हुआ और अब पौष शुक्ल द्वादशी युगाब्द 5125, तदनुसार 22 जनवरी 2024 को श्री रामलला की मूर्ति स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया है।
धार्मिक दृष्टि से श्री राम बहुसंख्यक समाज के आराध्य देव हैं और श्री रामचन्द्र का जीवन आज भी संपूर्ण समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का आदर्श है। इसलिए अब अकारण विवाद को लेकर जो पक्ष-विपक्ष खड़ा हुआ है, उसे ख़त्म कर देना चाहिए। इस बीच में उत्पन्न हुई कड़वाहट भी समाप्त होनी चाहिए। समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह अवश्य देखना चाहिए कि विवाद पूर्णतः समाप्त हो जाये। अयोध्या का अर्थ है ‘जहाँ युद्ध न हो’, ‘संघर्ष से मुक्त स्थान’ वह नगर ऐसा है। संपूर्ण देश में इस निमित्त मन में अयोध्या का पुनर्निर्माण आज की आवश्यकता है और हम सभी का कर्तव्य भी है।
अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण का अवसर अर्थात राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह आधुनिक भारतीय समाज द्वारा भारत के आचरण के मर्यादा की जीवनदृष्टि की स्वीकृति है। मंदिर में श्रीराम की पूजा ‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं’ की पद्धति से और साथ ही राम के दर्शन को मन मंदिर में स्थापित कर उसके प्रकाश में आदर्श आचरण अपनाकर भगवान श्री राम की पूजा करनी है क्योंकि “शिवो भूत्वा शिवं भजेत् रामो भूत्वा रामं भजेत्” को ही सच्ची पूजा कहा गया है।
इस दृष्टि से विचार करें तो भारतीय संस्कृति के सामाजिक स्वरूप के अनुसार
मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पंडितः।
इस तरह हमें भी श्री राम के मार्ग पर चलने होगा।
जीवन में सत्यनिष्ठा, बल और पराक्रम के साथ क्षमा, विनयशीलता और नम्रता, सबके साथ व्यवहार में नम्रता, हृदय की सौम्यता और कर्तव्य पालन में स्वयं के प्रति कठोरता इत्यादि, श्री राम के गुणों का अनुकरण हर किसी को अपने जीवन में और अपने परिवार में सभी के जीवन में लाने का प्रयत्न ईमानदारी, लगन और मेहनत से करना होगा।
साथ ही, अपने राष्ट्रीय जीवन को देखते हुए सामाजिक जीवन में भी अनुशासन बनाना होगा। हम जानते हैं कि श्री राम-लक्ष्मण ने उसी अनुशासन के बल पर अपना 14 वर्ष का वनवास और शक्तिशाली रावण के साथ सफल संघर्ष पूरा किया था। श्री राम के चरित्र में प्रतिबिंबित न्याय और करुणा, सद्भाव, निष्पक्षता, सामाजिक गुण, एक बार फिर समाज में व्याप्त करना, शोषण रहित समान न्याय पर आधारित, शक्ति के साथ-साथ करुणा से संपन्न एक पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना, यही श्रीराम की पूजा होगी।
अहंकार, स्वार्थ और भेदभाव के कारण यह विश्व विनाश के उन्माद में है और अपने ऊपर अनंत विपत्तियाँ ला रहा है। सद्भाव, एकता, प्रगति और शांति का मार्ग दिखाने वाले जगदाभिराम भारतवर्ष के पुनर्निर्माण का सर्व-कल्याणकारी और ‘सर्वेषाम् अविरोधी’ अभियान का प्रारंभ, श्री रामलला के राम जन्मभूमि में प्रवेश और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा से होने वाला है। हम उस अभियान के सक्रिय कार्यान्वयनकर्ता हैं। हम सभी ने 22 जनवरी के भक्तिमय उत्सव में मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ-साथ भारत और इससे पूरे विश्व के पुनर्निर्माण को पूर्तता में लाने का संकल्प लिया है। इस भावना को अंतर्मन में स्थापित करते हुए अग्रसर हो …
जय सिया राम।
( लेखक – डॉ. मोहन भागवत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं।)
]]>1. मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है।
2. मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
3. मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।
4. मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
5. मंदिर में 5 मंडप होंगे: नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप
6. खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
7. मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
8. दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
9. मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
10. परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
11. मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
12. मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
13. दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
14. मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
15. मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
16. मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
17. मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
18. 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
19. मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
20. मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।
]]>भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को निरस्त करने पर 11 दिसंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में भारत की संप्रभुता और अखंडता को बरकरार रखा है, जिसे प्रत्येक भारतीय द्वारा सदैव संजोया जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना पूरी तरह से उचित है कि 5 अगस्त 2019 को हुआ निर्णय संवैधानिक एकीकरण को बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया था, न कि इसका उद्देश्य विघटन था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य को भी भलीभांति माना है कि अनुच्छेद 370 का स्वरूप स्थायी नहीं था।
जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की खूबसूरत और शांत वादियां, बर्फ से ढके पहाड़, पीढ़ियों से कवियों, कलाकारों और हर भारतीय के दिल को मंत्रमुग्ध करते रहे हैं। यह एक ऐसा अद्भुत क्षेत्र है जो हर दृष्टि से अभूतपूर्व है, जहां हिमालय आकाश को स्पर्श करता हुआ नजर आता है, और जहां इसकी झीलों एवं नदियों का निर्मल जल स्वर्ग का दर्पण प्रतीत होता है। लेकिन पिछले कई दशकों से जम्मू-कश्मीर के अनेक स्थानो पर ऐसी हिंसा और अस्थिरता देखी गई, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। वहां के हालात कुछ ऐसे थे, जिससे जम्मू-कश्मीर के परिश्रमी, प्रकृति प्रेमी और स्नेह से भरे लोगों को कभी भी रू-ब-रू नहीं होना चाहिए था।
लेकिन दुर्भाग्यवश, सदियों तक उपनिवेश बने रहने, विशेषकर आर्थिक और मानसिक रूप से पराधीन रहने के कारण, तब का समाज एक प्रकार से भ्रमित हो गया। अत्यंत बुनियादी विषयों पर स्पष्ट नजरिया अपनाने के बजाय दुविधा की स्थिति बनी रही जिससे और ज्यादा भ्रम उत्पन्न हुआ। अफसोस की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर को इस तरह की मानसिकता से व्यापक नुकसान हुआ।
देश की आजादी के समय तब के राजनीतिक नेतृत्व के पास राष्ट्रीय एकता के लिए एक नई शुरुआत करने का विकल्प था। लेकिन तब इसके बजाय उसी भ्रमित समाज का दृष्टिकोण जारी रखने का निर्णय लिया गया, भले ही इस वजह से दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करनी पड़ी।
मुझे अपने जीवन के शुरुआती दौर से ही जम्मू-कश्मीर आंदोलन से जुड़े रहने का अवसर मिला है। मेरी अवधारणा सदैव ही ऐसी रही है जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर महज एक राजनीतिक मुद्दा नहीं था, बल्कि यह विषय समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने के बारे में था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरू मंत्रिमंडल में एक महत्वपूर्ण विभाग मिला हुआ था और वे काफी लंबे समय तक सरकार में बने रह सकते थे। फिर भी, उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर मंत्रिमंडल छोड़ दिया और आगे का कठिन रास्ता चुना, भले ही इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। लेकिन उनके अथक प्रयासों और बलिदान से करोड़ों भारतीय कश्मीर मुद्दे से भावनात्मक रूप से जुड़ गए।
कई वर्षों बाद अटल जी ने श्रीनगर में एक सार्वजनिक बैठक में ‘इंसानियत’, ‘जम्हूरियत’ और ‘कश्मीरियत’ का प्रभावशाली संदेश दिया, जो सदैव ही प्रेरणा का महान स्रोत भी रहा है। मेरा हमेशा से दृढ़ विश्वास रहा है कि जम्मू-कश्मीर में जो कुछ हुआ था, वह हमारे राष्ट्र और वहां के लोगों के साथ एक बड़ा विश्वासघात था। मेरी यह भी प्रबल इच्छा थी कि मैं इस कलंक को, लोगों पर हुए इस अन्याय को मिटाने के लिए जो कुछ भी कर सकता हूँ, उसे जरूर करूँ। मैं हमेशा से जम्मू-कश्मीर के लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए काम करना चाहता था।
सरल शब्दों में कहें तो, अनुच्छेद 370 और 35 (ए) जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के सामने बड़ी बाधाओं की तरह थे। ये अनुच्छेद एक अटूट दीवार की तरह थे तथा गरीब,वंचित, दलितों-पिछड़ों-महिलाओं के लिए पीड़ादायक थे। अनुच्छेद 370 और 35(ए) के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों को वह अधिकार और विकास कभी नहीं मिल पाया, जो उनके साथी देशवासियों को मिला। इन अनुच्छेदों के कारण, एक ही राष्ट्र के लोगों के बीच दूरियां पैदा हो गईं। इस दूरी के कारण, हमारे देश के कई लोग, जो जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को हल करने के लिए काम करना चाहते थे, ऐसा करने में असमर्थ थे, भले ही उन लोगों ने वहां के लोगों के दर्द को स्पष्ट रूप से महसूस किया हो।
एक कार्यकर्ता के रूप में, जिसने पिछले कई दशकों से इस मुद्दे को करीब से देखा हो, वो इस मुझे मुद्दे की बारीकियों और जटिलताओं से भली-भांति परिचित था। मैं एक बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट था- जम्मू-कश्मीर के लोग विकास चाहते हैं तथा वे अपनी ताकत और कौशल के आधार पर भारत के विकास में योगदान देना चाहते हैं। वे अपने बच्चों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता चाहते हैं, एक ऐसा जीवन जो हिंसा और अनिश्चितता से मुक्त हो।
इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर के लोगों की सेवा करते समय, हमने तीन बातों को प्रमुखता दी- नागरिकों की चिंताओं को समझना, सरकार के कार्यों के माध्यम से आपसी-विश्वास का निर्माण करना तथा विकास, निरंतर विकास को प्राथमिकता देना।
मुझे याद है, 2014 में, हमारे सत्ता संभालने के तुरंत बाद, जम्मू-कश्मीर में विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिससे कश्मीर घाटी में बहुत नुकसान हुआ था। सितंबर 2014 में, मैं स्थिति का आकलन करने के लिए श्रीनगर गया और पुनर्वास के लिए विशेष सहायता के रूप में 1000 करोड़ रुपये की घोषणा भी की। इससे लोगों में ये संदेश भी गया कि संकट के दौरान हमारी सरकार वहां के लोगों की मदद के लिए कितनी संवेदनशील है। मुझे जम्मू-कश्मीर में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से मिलने का अवसर मिला है और इन संवादों में एक बात समान समान रूप से उभरती है – लोग न केवल विकास चाहते हैं, बल्कि वे दशकों से व्याप्त भ्रष्टाचार से भी मुक्ति चाहते हैं। उस साल मैंने जम्मू-कश्मीर में जान गंवाने वाले लोगों की याद में दीपावली नहीं मनाने का फैसला किया। मैंने दीपावली के दिन जम्मू-कश्मीर में मौजूद रहने का भी फैसला किया।
जम्मू एवं कश्मीर की विकास यात्रा को और मजबूती प्रदान करने के लिए हमने यह तय किया कि हमारी सरकार के मंत्री बार-बार वहां जायेंगे और वहां के लोगों से सीधे संवाद करेंगे। इन लगातार दौरों ने भी जम्मू एवं कश्मीर में सद्भावना कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मई 2014 से मार्च 2019 के दौरान 150 से अधिक मंत्रिस्तरीय दौरे हुए। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। वर्ष 2015 का विशेष पैकेज जम्मू एवं कश्मीर की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसमें बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार सृजन, पर्यटन को बढ़ावा देने और हस्तशिल्प उद्योग को सहायता प्रदान करने से जुड़ी पहल शामिल थीं।
हमने खेलशक्ति में युवाओं के सपनों को साकार करने की क्षमता को पहचानते हुए जम्मू एवं कश्मीर में इसका भरपूर सदुपयोग किया। विभिन्न खेलों के माध्यम से, हमने वहां के युवाओं की आकांक्षाओं और उनके भविष्य पर खेलों से जुड़ी गतिविधियों के परिवर्तनकारी प्रभाव को देखा। इस दौरान विभिन्न खेल स्थलों का आधुनिकीकरण किया गया, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए और प्रशिक्षक उपलब्ध कराए गए। स्थानीय स्तर पर फुटबॉल क्लबों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाना इन सबमें एक सबसे अनूठी बात रही। इसके परिणाम शानदार निकले। मुझे प्रतिभाशाली फुटबॉल खिलाड़ी अफशां आशिक का नाम याद आ रहा है। वो दिसंबर 2014 में श्रीनगर में पथराव करने वाले एक समूह का हिस्सा थी, लेकिन सही प्रोत्साहन मिलने पर उसने फुटबॉल की ओर रुख किया, उसे प्रशिक्षण के लिए भेजा गया और उसने खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। मुझे ‘फिट इंडिया डायलॉग्स’ के एक कार्यक्रम के दौरान उसके साथ हुई बातचीत याद है, जिसमें मैंने कहा था कि अब ‘बेंड इट लाइक बेकहम’ से आगे बढ़ने का समय है क्योंकि अब यह ‘ऐस इट लाइक अफशां’ है। मुझे खुशी है कि अब तो अन्य युवाओं ने किकबॉक्सिंग, कराटे और अन्य खेलों में अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी है।
पंचायत चुनाव भी इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ। एक बार फिर, हमारे सामने या तो सत्ता में बने रहने या अपने सिद्धांतों पर अटल रहने का विकल्प था। हमारे लिए यह विकल्प कभी भी कठिन नहीं था और हमने सरकार को गंवाने के विकल्प को चुनकर उन आदर्शों को प्राथमिकता दी जिनके पक्ष में हम खड़े हैं। जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की आकांक्षाएं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। पंचायत चुनावों की सफलता ने जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक प्रकृति को इंगित किया। मुझे गांवों के प्रधानों के साथ हुई एक बातचीत याद आती है। अन्य मुद्दों के अलावा, मैंने उनसे एक अनुरोध किया कि किसी भी स्थिति में स्कूलों को नहीं जलाया जाना चाहिए और स्कूलों की सुरक्षा की जानी चाहिए। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि इसका पालन किया गया। आखिरकार, अगर स्कूल जलाए जाते हैं तो सबसे ज्यादा नुकसान छोटे बच्चों का होता है।
5 अगस्त का ऐतिहासिक दिन हर भारतीय के दिल और दिमाग में बसा हुआ है। हमारी संसद ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक निर्णय पारित किया और तब से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में बहुत कुछ बदलाव आया है। न्यायिक अदालत का फैसला दिसंबर 2023 में आया है, लेकिन जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विकास की गति को देखते हुए जनता की अदालत ने चार साल पहले अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को निरस्त करने के संसद के फैसले का जोरदार समर्थन किया है।
राजनीतिक स्तर पर, पिछले 4 वर्षों को जमीनी स्तर पर लोकतंत्र में फिर से भरोसा जताने के रूप में देखा जाना चहिये। महिलाओं, आदिवासियों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और समाज के वंचित वर्गों को उनका हक नहीं मिल रहा था। वहीं, लद्दाख की आकांक्षाओं को भी पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता था। लेकिन, 5 अगस्त 2019 ने सब कुछ बदल दिया। सभी केंद्रीय कानून अब बिना किसी डर या पक्षपात के लागू होते हैं, प्रतिनिधित्व भी पहले से अधिक व्यापक हो गया है। त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू हो गई है, बीडीसी चुनाव हुए हैं, और शरणार्थी समुदाय, जिन्हें लगभग भुला दिया गया था, उन्हें भी विकास का लाभ मिलना शुरू हो गया है।
केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं ने शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया है, ऐसी योजनाओं में समाज के सभी वर्गों को शामिल किया गया है। इनमें सौभाग्य और उज्ज्वला योजनाएं शामिल हैं। आवास, नल से जल कनेक्शन और वित्तीय समावेशन में प्रगति हुई है। लोगों के लिए बड़ी चुनौती रही स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भी बुनियादी ढांचे का विकास किया गया है। सभी गांवों ने खुले में शौच से मुक्त-ओडीएफ प्लस का दर्जा प्राप्त कर लिया है। सरकारी रिक्तियां, जो कभी भ्रष्टाचार और पक्षपात का शिकार होती थीं, पारदर्शी और सही प्रक्रिया के तहत भरी गई हैं। आईएमआर जैसे अन्य संकेतकों में सुधार दिखा है। बुनियादी ढांचे और पर्यटन में बढ़ावा सभी देख सकते हैं। इसका श्रेय स्वाभाविक रूप से जम्मू-कश्मीर के लोगों की दृढ़ता को जाता है, जिन्होंने बार-बार दिखाया है कि वे केवल विकास चाहते हैं और इस सकारात्मक बदलाव के वाहक बनने के इच्छुक हैं। इससे पहले जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की स्थिति पर सवालिया निशान लगा हुआ था। अब, रिकॉर्ड वृद्धि, रिकॉर्ड विकास, पर्यटकों के रिकॉर्ड आगमन के बारे में सुनकर लोगों को सुखद आश्चर्य होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर के अपने फैसले में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत किया है। इसने हमें याद दिलाया कि एकता और सुशासन के लिए साझा प्रतिबद्धता ही हमारी पहचान है। आज जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को साफ-सुथरा माहौल मिलता है, जिसमें वह जीवंत आकांक्षाओं से भरे अपने भविष्य को साकार कर सकता है। आज लोगों के सपने बीते समय के मोहताज नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाएं हैं। जम्मू और, कश्मीर में मोहभंग, निराशा और हताशा की जगह अब विकास, लोकतंत्र और गरिमा ने ले ली है।
( लेखक – नरेंद्र मोदी , भारत के प्रधानमंत्री हैं। ये 2014 और 2019 में लगातार दो बार भारी बहुमत के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के प्रधानमंत्री निर्वाचित हो चुके हैं और 2024 में हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे हैं।)
]]>प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोमवार को सुनाए गए फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि यह सिर्फ कानूनी फैसला नहीं है बल्कि जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए आशा की किरण है और उनके उज्जवल भविष्य का वादा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 370 के कारण अब तक कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘X’ पर पोस्ट कर लिखा, “अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर आज का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है और 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद द्वारा लिए गए फैसले को संवैधानिक रूप से बरकरार रखता है। यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने, अपने गहन ज्ञान से, एकता के मूल सार को मजबूत किया है जिसे हम, भारतीय होने के नाते, बाकी सब से ऊपर प्रिय मानते हैं और संजोते हैं। मैं जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपके सपनों को पूरा करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता अटूट है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि प्रगति का लाभ न केवल आप तक पहुंचे, बल्कि इसका लाभ हमारे समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाले वर्गों तक भी पहुंचे, जो अनुच्छेद 370 के कारण पीड़ित थे। आज का फैसला सिर्फ कानूनी फैसला नहीं है; यह आशा की किरण है, उज्जवल भविष्य का वादा है और एक मजबूत, अधिक एकजुट भारत के निर्माण के हमारे सामूहिक संकल्प का प्रमाण है।”
Today's Supreme Court verdict on the abrogation of Article 370 is historic and constitutionally upholds the decision taken by the Parliament of India on 5th August 2019; it is a resounding declaration of hope, progress and unity for our sisters and brothers in Jammu, Kashmir and…
— Narendra Modi (@narendramodi) December 11, 2023
आइए आपको बताते हैं- सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खास बातें–
भारत द्वारा जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के आज 365 दिन पूरे हो गए हैं। यह ‘वसुधैव कुटुंबकम’, ‘One Earth, One Family, One Future’ की भावना को प्रतिबिंबित करने, इसके लिए पुनः प्रतिबद्ध होने और इसे जीवंत बनाने का क्षण है। जब पिछले वर्ष भारत को यह जिम्मेदारी मिली थी, तब विश्व विभिन्न चुनौतियों से जूझ रहा था: कोविड-19 महामारी से उबरने का प्रयास, बढ़ते जलवायु खतरे, वित्तीय अस्थिरता और विकासशील देशों में ऋण संकट, जैसी चुनौतियां दुनिया के सामने थीं। इसके अलावा, कमजोर होता मल्टीलैटरलइज्म यानी बहुपक्षवाद इन चुनौतियों को और गंभीर बना रहा था। बढ़ते हुए संघर्ष और प्रतिस्पर्धा के बीच, विभिन्न देशों में परस्पर सहयोग की भावना में कमी आई और इसका प्रभाव वैश्विक प्रगति पर पड़ रहा था।
जी-20 का अध्यक्ष बनने के बाद, भारत ने दुनिया के सामने जीडीपी-केंद्रित सोच से आगे बढ़कर मानव-केंद्रित प्रगति का विजन प्रस्तुत किया। भारत ने दुनिया को यह याद दिलाने प्रयास किया कि कौन सी चीजें हमें जोड़ती हैं। हमारा फोकस इस बात पर नहीं था कि कौन सी चीजें हमें विभाजित करती हैं। अंततः, भारत के इन प्रयासों का परिणाम आया, वैश्विक संवाद आगे बढ़ा और कुछ देशों के सीमित हितों के ऊपर कई देशों की आकांक्षाओं को महत्व दिया गया। जैसा कि हम जानते हैं, इसके लिए बहुपक्षवाद में मूलभूत सुधार की आवश्यकता थी। समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक – ये चार शब्द जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत के दृष्टिकोण को परिभाषित करते हैं। नई दिल्ली लीडर्स डिक्लेरेशन (एनडीएलडी), जिसे सभी जी-20 सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया है, इन सिद्धांतों पर कार्य करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
समावेश की भावना हमारी अध्यक्षता के केंद्र में रही है। जी-20 के स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ (एयू) को शामिल करने से 55 अफ्रीकी देशों को इस समूह में जगह मिली है, जिससे इसका विस्तार वैश्विक आबादी के 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इस सक्रिय कदम से वैश्विक चुनौतियों और अवसरों पर जी-20 में विस्तार से बातचीत को बढ़ावा मिला है। भारत द्वारा अपनी तरह की पहली बैठक ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ ने बहुपक्षवाद की एक नई शुरुआत की। इस बैठक के दो संस्करण आयोजित हुए। भारत अंतर्राष्ट्रीय विमर्श में ग्लोबल साउथ के देशों की चिंताओं को मुख्यधारा में लाने में सफल रहा। इससे एक ऐसे युग की शुरुआत हुई है, जहां विकासशील देशों को ग्लोबल नरैटिव की दिशा तय करने का उचित अवसर प्राप्त होगा।
समावेशिता की वजह से ही जी-20 में भारत के घरेलू दृष्टिकोण का भी प्रभाव दिखा। इस आयोजन ने लोक अध्यक्षता का स्वरूप ले लिया, जोकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की दृष्टि से बिल्कुल सही था।“जनभागीदारी” कार्यक्रमों के माध्यम से, जी-20 1.4 बिलियन नागरिकों तक पहुंचा और इस प्रक्रिया में सभी राज्यों एवं केन्द्र-शासित प्रदेशों (यूटी) को भागीदार के रूप में शामिल किया गया। भारत ने यह सुनिश्चित किया कि मुख्य विषयों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान जी-20 के दायित्वों के अनुरूप विकास के व्यापक लक्ष्यों की ओर हो।
2030 के एजेंडे को ध्यान में रखते हुए भारत ने, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) में तेजी लाने के लिए जी-20 का 2023 एक्शन प्लान पेश किया। इसके लिए भारत ने स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता, पर्यावरणीय स्थिरता सहित परस्पर जुड़े मुद्दों पर एक व्यापक एक्शन ओरिएंटेड दृष्टिकोण अपनाया। इस प्रगति को संचालित करने वाला एक प्रमुख क्षेत्र मजबूत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) है। इस मामले में आधार, यूपीआई और डिजिलॉकर जैसे डिजिटल इनोवेशन के क्रांतिकारी प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाले भारत ने निर्णायक सिफारिशें दीं। जी-20 के माध्यम से, हमने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपॉजिटरी को सफलतापूर्वक पूरा किया जोकि वैश्विक तकनीकी सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। कुल 16 देशों के 50 से अधिक डीपीआई को शामिल करने वाली यह रिपॉजिटरी, समावेशी विकास की शक्ति का लाभ उठाने के लिए ग्लोबल साउथ को डीपीआई का निर्माण करने, उसे अपनाने और व्यापक बनाने में मदद करेगी।
One Earth की भावना के तहत, हमने तात्कालिक, स्थायी और न्यायसंगत बदलाव लाने के महत्वाकांक्षी एवं समावेशी लक्ष्य पेश किए। घोषणा का ‘ग्रीन डेवलपमेंट पैक्ट’ एक व्यापक रोडमैप की रूपरेखा तैयार करके भुखमरी से निपटने और पृथ्वी की रक्षा के बीच चुनाव करने की चुनौतियों का समाधान करता है। इस रोडमैप में रोजगार एवं इकोसिस्टम एक-दूसरे के पूरक हैं, उपभोग जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत है और उत्पादन पृथ्वी के अनुकूल है। साथ ही, जी-20 घोषणा में 2030 तक रीन्यूबल एनर्जी की वैश्विक क्षमता को तीन गुना करने का महत्वाकांक्षी आह्वान किया गया है। ग्लोबल बायोफ्यूल्स अलायंस की स्थापना और ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाने की दिशा में एक ठोस प्रयास के साथ एक स्वच्छ एवं हरित दुनिया बनाने संबंधी जी-20 की महत्वाकांक्षाएं निर्विवाद हैं। यह हमेशा से भारत का मूल्य रहा है और सतत विकास के लिए जीवनशैली (LiFE) के माध्यम से, दुनिया हमारी सदियों पुरानी परंपराओं से लाभान्वित हो सकती है।
इसके अलावा घोषणापत्र में जलवायु न्याय और समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया है, जिसके लिए ग्लोबल नॉर्थ से पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी सहायता देने का अनुरोध किया गया है। पहली बार विकास के वित्तपोषण से जुड़ी कुल राशि में भारी बढ़ोतरी की जरूरत को स्वीकार किया गया जो अरबों डॉलर से बढ़कर खरबों डॉलर हो गई है। जी-20 ने यह माना कि विकासशील देशों को वर्ष 2030 तक अपने ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी)’ को पूरा करने के लिए 5.9 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है। इतने ज्यादा संसाधन की आवश्यकता को देखते हुए जी-20 ने बेहतर, ज्यादा विशाल और अधिक प्रभावकारी मल्टीलैटरल डेवलपमेंट बैंक के महत्व पर विशेष जोर दिया।
इसके साथ-साथ भारत संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लागू करने, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे प्रमुख संस्थानों के पुनर्गठन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, जिससे और भी अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित होगी।
नई दिल्ली घोषणापत्र में महिला-पुरुष समानता को केंद्र में रखा गया, जिसकी परिणति अगले वर्ष महिलाओं के सशक्तिकरण पर एक विशेष वर्किंग ग्रुप के गठन के रूप में होगी। भारत का महिला आरक्षण विधेयक 2023, जिसमें भारत की लोकसभा और राज्य विधानसभा की एक तिहाई सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित किया गया है, महिलाओं के नेतृत्व में विकास के प्रति हमारी वचनबद्धता का प्रतीक है।
नई दिल्ली घोषणापत्र इन प्रमुख प्राथमिकताओं में सहयोग सुनिश्चित करने की एक नई भावना का प्रतीक है, जो नीतिगत स्पष्टता, विश्वसनीय व्यापार, और महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई पर केंद्रित है। यह बड़े गर्व की बात है कि हमारी अध्यक्षता के दौरान जी-20 ने 87 परिणाम हासिल किए और 118 दस्तावेज अपनाए, जो अतीत की तुलना में उल्लेखनीय रूप से काफी अधिक है।
जी-20 की हमारी अध्यक्षता के दौरान भारत ने जियो-पॉलिटिकल मुद्दों और आर्थिक प्रगति एवं विकास पर उनके प्रभावों पर व्यापक विचार-विमर्श की अगुवाई की। आतंकवाद और नागरिकों की हत्या पूरी तरह से अस्वीकार्य है, और हमें जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाकर इससे निपटना चाहिए। हमें शत्रुता से परे जाकर मानवतावाद को अपनाना होगा और यह दोहराना होगा कि यह युद्ध का युग नहीं है।
मुझे अत्यंत खुशी है कि हमारी अध्यक्षता के दौरान भारत ने असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं: इसने बहुपक्षवाद में नई जान फूंकी, ग्लोबल साउथ की आवाज बुलंद की, विकास की हिमायत की, और हर जगह महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लड़ाई लड़ी। अब जबकि हम जी-20 की अध्यक्षता ब्राजील को सौंप रहे हैं, तो हम इस विश्वास के साथ ऐसा कर रहे हैं कि समस्त लोगों, धरती, शांति और समृद्धि के लिए हमारे सामूहिक कदमों की गूंज आने वाले वर्षों में निरंतर सुनाई देती रहेगी।
( लेखक – नरेंद्र मोदी , भारत के प्रधानमंत्री हैं। ये 2014 और 2019 में लगातार दो बार भारी बहुमत के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के प्रधानमंत्री निर्वाचित हो चुके हैं और 2024 में हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे हैं।)
]]>उत्तराखंड शासन के अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने उनकी नियुक्ति को लेकर कार्यालय ज्ञाप जारी कर दिया है। वर्ष 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार वर्तमान में अपर पुलिस महानिदेशक, अभिसूचना एवं सुरक्षा के पद पर कार्यरत है। उन्हें वर्तमान डीजीपी अशोक कुमार के रिटायर होने के बाद 1 दिसंबर, 2023 से वर्तमान दायित्व के साथ-साथ अगले आदेश तक उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है यानी कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है।
अभिनव कुमार अग्रिम आदेशों तक उत्तराखंड के नए कार्यवाहक डीजीपी होंगे। वह इससे पहले हरिद्वार और देहरादून में पुलिस कप्तान भी रहे हैं और आईजी गढ़वाल के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं।
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