इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद में हिंडन नदी में छठ पूजा पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद में प्रदूषित हिंडन नदी में छठ पूजा पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि छठ पूजा शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं। याची ने हाईकोर्ट आने में देरी कर दी है इसलिए हिंडन नदी में छठ पूजा पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने गाजियाबाद के एक महंत की जनहित याचिका को खारिज करते हए यह फैसला दिया है। राज्य सरकार की अधिवक्ता आकांक्षा शर्मा ने इस याचिका का कोर्ट में विरोध किया। वहीं याची के अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि गाजियाबाद में हिंडन नदी प्रदूषित है। छठ पूजा में इसमें स्नान करने से संक्रामक बीमारियां फैलने की आशंका है। याचिकाकर्ता ने दिल्ली में यमुना नदी में छठ पूजा पर रोक लगाने का हवाला देते हुए हिंडन नदी में भी छठ पूजा पर रोक लगाने की मांग की थी।
]]>योगी सरकार द्वारा मंजूर किए गए इस अध्यादेश में किरायेदार और मकान मालिक दोनों के हितों की सुरक्षा के प्रावधान किये जाने का दावा किया गया है। दोनों के बीच किसी भी तरह के विवाद के निपटारे के लिए रेंट अथॉरिटी एवं रेंट ट्रिब्यूनल बनाने का प्रावधान इस नए कानून में है। यहां अधिकतम 60 दिनों में वादों का निस्तारण करना जरूरी होगा। हालांकि पुराने मामलों में किराये का पुनरीक्षण किया जा सकेगा।
किरायेदारों के हितों का रखा गया ध्यान
इस नए कानून में किरायेदारों के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है। अब उत्तर प्रदेश में मकान मालिक मनमाने तरीके से किराया नहीं बढ़ा पाएंगे। नए कानून के मुताबिक आवासीय पर 5 और गैर आवासीय पर 7 प्रतिशत ही सालाना किराया बढ़ाया जा सकेगा। किराया वृद्धि की गणना चक्रवृद्धि आधार पर होगी। एडवांस के मामले में आवासीय परिसर के लिए सिक्योरिटी डिपॉजिट 2 महीने से अधिक नहीं होगा और गैर आवासीय परिसर के लिए 6 महीने का एडवांस लिया जा सकेगा।
मकान मालिकों के हितों की भी सुरक्षा
नए कानून के मुताबिक कोई भी मकान मालिक बिना अनुबंध के किसी को अपना मकान किराये पर नहीं देगा। अनुबंध के मुताबिक किरायेदार को भी अच्छी तरह से मकान की देखभाल करनी होगी। किरायेदार बिना अनुमति के घर में कोई तोड़-फोड़ नहीं कर पायेगा। नए कानून में मकान मालिक को यह छूट होगी कि अगर किरायेदार 2 महीने तक किराया नहीं दें तो वो अपनी संपत्ति को किरायेदार से खाली करवा सकता है। पुराने किरायेदारों के मामले में यदि लिखित अनुबंध नहीं है तो ऐसा कराने के लिए 3 महीने का समय दिया जाएगा। इसके मुताबिक किरायेदारी की अवधि भी निर्धारित होगी।
मकान मालिक और किरायेदार- दोनों के लिए जानना जरूरी
नए कानून के मुताबिक किरायेदार रखने से पहले मकान मालिक को इसकी सूचना किराया प्राधिकरण को देना अनिवार्य होगा। किराया प्राधिकरण एक यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर देगा और सूचना प्राप्ति की तिथि से 7 दिनों के अंदर अपनी वेबसाइट पर किरायेदारी की सूचना को अपलोड करेगा।
किरायेदार और मकान मालिक के बीच लिखित अनुबंध को भी अनिवार्य बना दिया गया है। अनुबंध की एक-एक कॉपी दोनों के पास रहेगी। किरायेदार को रसीद भी देनी पड़ेगी। अनुबंध की अवधि के दौरान मकान मालिक किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकेगा।
मृत्यु के मामले में उत्तराधिकारियों के अधिकार अनुबंध पत्र की शर्तें मकान मालिक के साथ-साथ किरायेदार के उत्तराधिकारियों पर भी लागू होगी।
हाइकोर्ट ने भी दिया था आदेश
आपको बता दें कि प्रदेश में वर्तमान में ‘ उत्तर प्रदेश शहरी भवन ( किराये पर देने, किराये एवं बेदखली ) विनियमन अधिनियम- 1972 लागू है। लेकिन इसके बावजूद मकान मालिक और किरायेदारों के बीच विवादों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है और इसे देखते हुए ही सरकार ने यह अध्यादेश लाने का फैसला किया। हाइकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार को 11 जनवरी से पहले इस अध्यादेश को लागू करने का निर्देश दिया था।
]]>आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों की तस्वीरों वाले पोस्टर्स को न केवल प्रदेश भर में सड़कों पर लगाया जा रहा है बल्कि साथ ही उनसे हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई के लिए जुर्माना भी वसूला जा रहा है।
प्रदेश में आंदोलन के दौरान हिंसा का सहारा लेने वाले तत्वों को सख्त संदेश देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था,
“अगर कोई व्यक्ति कानून को बंधक बनाकर, तोड़-फोड़ या आगजनी करेगा, जनता की संपत्ति को नष्ट करेगा तो सरकार ऐसी किसी भी हरकत को बर्दाश्त नहीं करेगी।
हाल ही में सरकार ने निर्णय लिया है कि जिन्होंने आगजनी की थी उन्हीं से भरपाई की जाएगी”
प्रदेश सरकार की इसी नीति के तहत लखनऊ प्रशासन ने राजधानी लखनऊ की सड़कों पर हिंसा के आरोपी 57 लोगों की तस्वीरों वाले पोस्टर्स लगा दिए थे। इसे योगी सरकार के दंगाइयों के खिलाफ सख्त स्टैंड के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे लेकर राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई यूपी सरकार को फटकार
सोमवार को प्रदेश की योगी सरकार को झटका देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंसा के आरोपियों से वसूली वाले पोस्टर को हटाने का आदेश दिया। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर एवं जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। कोर्ट ने 16 मार्च से पहले अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा भी दायर करने को कहा है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश-योगी सरकार करेगी अपील
प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के विपरीत हिंसा के आरोपियों के पोस्टर नहीं हटाने का फैसला किया है। CM योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह फैसला किया गया। लखनऊ के लोक भवन में हुई इस उच्चस्तरीय बैठक में उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस कमिश्नर लखनऊ, जिलाधिकारी लखनऊ के अलावा कई बड़े अधिकारी भी शामिल हुए थे।
अधिकारियों की लोक भवन में हुई इस बैठक में फैसला लिया गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। बताया जा रहा है कि प्रदेश सरकार होली के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।
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