भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को निरस्त करने पर 11 दिसंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में भारत की संप्रभुता और अखंडता को बरकरार रखा है, जिसे प्रत्येक भारतीय द्वारा सदैव संजोया जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना पूरी तरह से उचित है कि 5 अगस्त 2019 को हुआ निर्णय संवैधानिक एकीकरण को बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया था, न कि इसका उद्देश्य विघटन था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य को भी भलीभांति माना है कि अनुच्छेद 370 का स्वरूप स्थायी नहीं था।
जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की खूबसूरत और शांत वादियां, बर्फ से ढके पहाड़, पीढ़ियों से कवियों, कलाकारों और हर भारतीय के दिल को मंत्रमुग्ध करते रहे हैं। यह एक ऐसा अद्भुत क्षेत्र है जो हर दृष्टि से अभूतपूर्व है, जहां हिमालय आकाश को स्पर्श करता हुआ नजर आता है, और जहां इसकी झीलों एवं नदियों का निर्मल जल स्वर्ग का दर्पण प्रतीत होता है। लेकिन पिछले कई दशकों से जम्मू-कश्मीर के अनेक स्थानो पर ऐसी हिंसा और अस्थिरता देखी गई, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। वहां के हालात कुछ ऐसे थे, जिससे जम्मू-कश्मीर के परिश्रमी, प्रकृति प्रेमी और स्नेह से भरे लोगों को कभी भी रू-ब-रू नहीं होना चाहिए था।
लेकिन दुर्भाग्यवश, सदियों तक उपनिवेश बने रहने, विशेषकर आर्थिक और मानसिक रूप से पराधीन रहने के कारण, तब का समाज एक प्रकार से भ्रमित हो गया। अत्यंत बुनियादी विषयों पर स्पष्ट नजरिया अपनाने के बजाय दुविधा की स्थिति बनी रही जिससे और ज्यादा भ्रम उत्पन्न हुआ। अफसोस की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर को इस तरह की मानसिकता से व्यापक नुकसान हुआ।
देश की आजादी के समय तब के राजनीतिक नेतृत्व के पास राष्ट्रीय एकता के लिए एक नई शुरुआत करने का विकल्प था। लेकिन तब इसके बजाय उसी भ्रमित समाज का दृष्टिकोण जारी रखने का निर्णय लिया गया, भले ही इस वजह से दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करनी पड़ी।
मुझे अपने जीवन के शुरुआती दौर से ही जम्मू-कश्मीर आंदोलन से जुड़े रहने का अवसर मिला है। मेरी अवधारणा सदैव ही ऐसी रही है जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर महज एक राजनीतिक मुद्दा नहीं था, बल्कि यह विषय समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने के बारे में था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरू मंत्रिमंडल में एक महत्वपूर्ण विभाग मिला हुआ था और वे काफी लंबे समय तक सरकार में बने रह सकते थे। फिर भी, उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर मंत्रिमंडल छोड़ दिया और आगे का कठिन रास्ता चुना, भले ही इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। लेकिन उनके अथक प्रयासों और बलिदान से करोड़ों भारतीय कश्मीर मुद्दे से भावनात्मक रूप से जुड़ गए।
कई वर्षों बाद अटल जी ने श्रीनगर में एक सार्वजनिक बैठक में ‘इंसानियत’, ‘जम्हूरियत’ और ‘कश्मीरियत’ का प्रभावशाली संदेश दिया, जो सदैव ही प्रेरणा का महान स्रोत भी रहा है। मेरा हमेशा से दृढ़ विश्वास रहा है कि जम्मू-कश्मीर में जो कुछ हुआ था, वह हमारे राष्ट्र और वहां के लोगों के साथ एक बड़ा विश्वासघात था। मेरी यह भी प्रबल इच्छा थी कि मैं इस कलंक को, लोगों पर हुए इस अन्याय को मिटाने के लिए जो कुछ भी कर सकता हूँ, उसे जरूर करूँ। मैं हमेशा से जम्मू-कश्मीर के लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए काम करना चाहता था।
सरल शब्दों में कहें तो, अनुच्छेद 370 और 35 (ए) जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के सामने बड़ी बाधाओं की तरह थे। ये अनुच्छेद एक अटूट दीवार की तरह थे तथा गरीब,वंचित, दलितों-पिछड़ों-महिलाओं के लिए पीड़ादायक थे। अनुच्छेद 370 और 35(ए) के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों को वह अधिकार और विकास कभी नहीं मिल पाया, जो उनके साथी देशवासियों को मिला। इन अनुच्छेदों के कारण, एक ही राष्ट्र के लोगों के बीच दूरियां पैदा हो गईं। इस दूरी के कारण, हमारे देश के कई लोग, जो जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को हल करने के लिए काम करना चाहते थे, ऐसा करने में असमर्थ थे, भले ही उन लोगों ने वहां के लोगों के दर्द को स्पष्ट रूप से महसूस किया हो।
एक कार्यकर्ता के रूप में, जिसने पिछले कई दशकों से इस मुद्दे को करीब से देखा हो, वो इस मुझे मुद्दे की बारीकियों और जटिलताओं से भली-भांति परिचित था। मैं एक बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट था- जम्मू-कश्मीर के लोग विकास चाहते हैं तथा वे अपनी ताकत और कौशल के आधार पर भारत के विकास में योगदान देना चाहते हैं। वे अपने बच्चों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता चाहते हैं, एक ऐसा जीवन जो हिंसा और अनिश्चितता से मुक्त हो।
इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर के लोगों की सेवा करते समय, हमने तीन बातों को प्रमुखता दी- नागरिकों की चिंताओं को समझना, सरकार के कार्यों के माध्यम से आपसी-विश्वास का निर्माण करना तथा विकास, निरंतर विकास को प्राथमिकता देना।
मुझे याद है, 2014 में, हमारे सत्ता संभालने के तुरंत बाद, जम्मू-कश्मीर में विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिससे कश्मीर घाटी में बहुत नुकसान हुआ था। सितंबर 2014 में, मैं स्थिति का आकलन करने के लिए श्रीनगर गया और पुनर्वास के लिए विशेष सहायता के रूप में 1000 करोड़ रुपये की घोषणा भी की। इससे लोगों में ये संदेश भी गया कि संकट के दौरान हमारी सरकार वहां के लोगों की मदद के लिए कितनी संवेदनशील है। मुझे जम्मू-कश्मीर में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से मिलने का अवसर मिला है और इन संवादों में एक बात समान समान रूप से उभरती है – लोग न केवल विकास चाहते हैं, बल्कि वे दशकों से व्याप्त भ्रष्टाचार से भी मुक्ति चाहते हैं। उस साल मैंने जम्मू-कश्मीर में जान गंवाने वाले लोगों की याद में दीपावली नहीं मनाने का फैसला किया। मैंने दीपावली के दिन जम्मू-कश्मीर में मौजूद रहने का भी फैसला किया।
जम्मू एवं कश्मीर की विकास यात्रा को और मजबूती प्रदान करने के लिए हमने यह तय किया कि हमारी सरकार के मंत्री बार-बार वहां जायेंगे और वहां के लोगों से सीधे संवाद करेंगे। इन लगातार दौरों ने भी जम्मू एवं कश्मीर में सद्भावना कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मई 2014 से मार्च 2019 के दौरान 150 से अधिक मंत्रिस्तरीय दौरे हुए। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। वर्ष 2015 का विशेष पैकेज जम्मू एवं कश्मीर की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसमें बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार सृजन, पर्यटन को बढ़ावा देने और हस्तशिल्प उद्योग को सहायता प्रदान करने से जुड़ी पहल शामिल थीं।
हमने खेलशक्ति में युवाओं के सपनों को साकार करने की क्षमता को पहचानते हुए जम्मू एवं कश्मीर में इसका भरपूर सदुपयोग किया। विभिन्न खेलों के माध्यम से, हमने वहां के युवाओं की आकांक्षाओं और उनके भविष्य पर खेलों से जुड़ी गतिविधियों के परिवर्तनकारी प्रभाव को देखा। इस दौरान विभिन्न खेल स्थलों का आधुनिकीकरण किया गया, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए और प्रशिक्षक उपलब्ध कराए गए। स्थानीय स्तर पर फुटबॉल क्लबों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाना इन सबमें एक सबसे अनूठी बात रही। इसके परिणाम शानदार निकले। मुझे प्रतिभाशाली फुटबॉल खिलाड़ी अफशां आशिक का नाम याद आ रहा है। वो दिसंबर 2014 में श्रीनगर में पथराव करने वाले एक समूह का हिस्सा थी, लेकिन सही प्रोत्साहन मिलने पर उसने फुटबॉल की ओर रुख किया, उसे प्रशिक्षण के लिए भेजा गया और उसने खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। मुझे ‘फिट इंडिया डायलॉग्स’ के एक कार्यक्रम के दौरान उसके साथ हुई बातचीत याद है, जिसमें मैंने कहा था कि अब ‘बेंड इट लाइक बेकहम’ से आगे बढ़ने का समय है क्योंकि अब यह ‘ऐस इट लाइक अफशां’ है। मुझे खुशी है कि अब तो अन्य युवाओं ने किकबॉक्सिंग, कराटे और अन्य खेलों में अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी है।
पंचायत चुनाव भी इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ। एक बार फिर, हमारे सामने या तो सत्ता में बने रहने या अपने सिद्धांतों पर अटल रहने का विकल्प था। हमारे लिए यह विकल्प कभी भी कठिन नहीं था और हमने सरकार को गंवाने के विकल्प को चुनकर उन आदर्शों को प्राथमिकता दी जिनके पक्ष में हम खड़े हैं। जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की आकांक्षाएं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। पंचायत चुनावों की सफलता ने जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक प्रकृति को इंगित किया। मुझे गांवों के प्रधानों के साथ हुई एक बातचीत याद आती है। अन्य मुद्दों के अलावा, मैंने उनसे एक अनुरोध किया कि किसी भी स्थिति में स्कूलों को नहीं जलाया जाना चाहिए और स्कूलों की सुरक्षा की जानी चाहिए। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि इसका पालन किया गया। आखिरकार, अगर स्कूल जलाए जाते हैं तो सबसे ज्यादा नुकसान छोटे बच्चों का होता है।
5 अगस्त का ऐतिहासिक दिन हर भारतीय के दिल और दिमाग में बसा हुआ है। हमारी संसद ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक निर्णय पारित किया और तब से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में बहुत कुछ बदलाव आया है। न्यायिक अदालत का फैसला दिसंबर 2023 में आया है, लेकिन जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विकास की गति को देखते हुए जनता की अदालत ने चार साल पहले अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को निरस्त करने के संसद के फैसले का जोरदार समर्थन किया है।
राजनीतिक स्तर पर, पिछले 4 वर्षों को जमीनी स्तर पर लोकतंत्र में फिर से भरोसा जताने के रूप में देखा जाना चहिये। महिलाओं, आदिवासियों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और समाज के वंचित वर्गों को उनका हक नहीं मिल रहा था। वहीं, लद्दाख की आकांक्षाओं को भी पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता था। लेकिन, 5 अगस्त 2019 ने सब कुछ बदल दिया। सभी केंद्रीय कानून अब बिना किसी डर या पक्षपात के लागू होते हैं, प्रतिनिधित्व भी पहले से अधिक व्यापक हो गया है। त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू हो गई है, बीडीसी चुनाव हुए हैं, और शरणार्थी समुदाय, जिन्हें लगभग भुला दिया गया था, उन्हें भी विकास का लाभ मिलना शुरू हो गया है।
केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं ने शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया है, ऐसी योजनाओं में समाज के सभी वर्गों को शामिल किया गया है। इनमें सौभाग्य और उज्ज्वला योजनाएं शामिल हैं। आवास, नल से जल कनेक्शन और वित्तीय समावेशन में प्रगति हुई है। लोगों के लिए बड़ी चुनौती रही स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भी बुनियादी ढांचे का विकास किया गया है। सभी गांवों ने खुले में शौच से मुक्त-ओडीएफ प्लस का दर्जा प्राप्त कर लिया है। सरकारी रिक्तियां, जो कभी भ्रष्टाचार और पक्षपात का शिकार होती थीं, पारदर्शी और सही प्रक्रिया के तहत भरी गई हैं। आईएमआर जैसे अन्य संकेतकों में सुधार दिखा है। बुनियादी ढांचे और पर्यटन में बढ़ावा सभी देख सकते हैं। इसका श्रेय स्वाभाविक रूप से जम्मू-कश्मीर के लोगों की दृढ़ता को जाता है, जिन्होंने बार-बार दिखाया है कि वे केवल विकास चाहते हैं और इस सकारात्मक बदलाव के वाहक बनने के इच्छुक हैं। इससे पहले जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की स्थिति पर सवालिया निशान लगा हुआ था। अब, रिकॉर्ड वृद्धि, रिकॉर्ड विकास, पर्यटकों के रिकॉर्ड आगमन के बारे में सुनकर लोगों को सुखद आश्चर्य होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर के अपने फैसले में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत किया है। इसने हमें याद दिलाया कि एकता और सुशासन के लिए साझा प्रतिबद्धता ही हमारी पहचान है। आज जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को साफ-सुथरा माहौल मिलता है, जिसमें वह जीवंत आकांक्षाओं से भरे अपने भविष्य को साकार कर सकता है। आज लोगों के सपने बीते समय के मोहताज नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाएं हैं। जम्मू और, कश्मीर में मोहभंग, निराशा और हताशा की जगह अब विकास, लोकतंत्र और गरिमा ने ले ली है।
( लेखक – नरेंद्र मोदी , भारत के प्रधानमंत्री हैं। ये 2014 और 2019 में लगातार दो बार भारी बहुमत के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के प्रधानमंत्री निर्वाचित हो चुके हैं और 2024 में हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे हैं।)
]]>प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोमवार को सुनाए गए फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि यह सिर्फ कानूनी फैसला नहीं है बल्कि जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए आशा की किरण है और उनके उज्जवल भविष्य का वादा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 370 के कारण अब तक कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘X’ पर पोस्ट कर लिखा, “अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर आज का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है और 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद द्वारा लिए गए फैसले को संवैधानिक रूप से बरकरार रखता है। यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने, अपने गहन ज्ञान से, एकता के मूल सार को मजबूत किया है जिसे हम, भारतीय होने के नाते, बाकी सब से ऊपर प्रिय मानते हैं और संजोते हैं। मैं जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपके सपनों को पूरा करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता अटूट है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि प्रगति का लाभ न केवल आप तक पहुंचे, बल्कि इसका लाभ हमारे समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाले वर्गों तक भी पहुंचे, जो अनुच्छेद 370 के कारण पीड़ित थे। आज का फैसला सिर्फ कानूनी फैसला नहीं है; यह आशा की किरण है, उज्जवल भविष्य का वादा है और एक मजबूत, अधिक एकजुट भारत के निर्माण के हमारे सामूहिक संकल्प का प्रमाण है।”
Today's Supreme Court verdict on the abrogation of Article 370 is historic and constitutionally upholds the decision taken by the Parliament of India on 5th August 2019; it is a resounding declaration of hope, progress and unity for our sisters and brothers in Jammu, Kashmir and…
— Narendra Modi (@narendramodi) December 11, 2023
आइए आपको बताते हैं- सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खास बातें–
देश की सुप्रीम अदालत ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने के दौरान मंगलवार को इस कठोर टिप्पणी के साथ अपना आदेश सुनाया। IMA ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया था कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन एलोपैथी को नीचा दिखाते हैं और कुछ बीमारियों के इलाज के बारे में झूठे दावे करते हैं। आईएमए ने आगे तर्क दिया कि पतंजलि के दावे असत्यापित हैं और ड्रग्स एंड अदर मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 जैसे कानूनों का सीधा उल्लंघन हैं।
अदालत ने केंद्र सरकार से इस संबंध में व्यावहारिक सिफारिशें पेश करने को भी कहा है। सुनवाई की अगली तारीख 5 फरवरी, 2024 तय की गई है।
एलोपैथिक दवाओं को निशाना बनाकर भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पतंजलि आयुर्वेद को यह कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने पतंजलि को चेतावनी दी कि अगर यह गलत दावा किया गया कि उसके उत्पाद कुछ बीमारियों को ठीक कर सकते हैं तो उस पर एक करोड़ का जुर्माना लगाया जाएगा। अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को यह भी आदेश दिया कि वह भविष्य में ऐसे किसी भी भ्रामक विज्ञापन का प्रकाशन बंद करे। अदालत ने कहा कि पतंजलि को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह प्रेस में आकस्मिक बयान देने से बचे।
]]>किसान आंदोलन का मसला अब देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि वो चाहती है कि इस मसले का फैसला बातचीत के जरिए हो जाये।
किसान आंदोलन के मसले पर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में 11 जनवरी को सुनवाई होगी। हालांकि सरकार की तरफ से बोलते हुए AG ने कहा कि अभी सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत चल रही है, इसलिए कोर्ट को सुनवाई नहीं करनी चाहिए। इस पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि वो भी चाहते हैं कि आपसी बातचीत से समाधान निकलें।
सुप्रीम कोर्ट ने भेजा यूपी और उत्तराखंड सरकार को नोटिस
लव जिहाद और धर्म परिवर्तन कानून का मसला भी अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। इस कानून के खिलाफ सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों से इस कानून के मसले पर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है।
]]>याचिका में पूजा स्थल कानून – 1991 की धारा – 2, 3 और 4 को संविधान का उल्लंघन बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है। उपाध्याय के मुताबिक इन धाराओं वाले कानून ने क्रूर आक्रमणकारियों द्वारा गैरकानूनी रुप से बनाये गए पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता दे दी है और इसलिए इसे रद्द करने की जरूरत है।
सुनिए भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय का बयान –
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1044208849353649&id=100012936302645
]]>
आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों की तस्वीरों वाले पोस्टर्स को न केवल प्रदेश भर में सड़कों पर लगाया जा रहा है बल्कि साथ ही उनसे हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई के लिए जुर्माना भी वसूला जा रहा है।
प्रदेश में आंदोलन के दौरान हिंसा का सहारा लेने वाले तत्वों को सख्त संदेश देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था,
“अगर कोई व्यक्ति कानून को बंधक बनाकर, तोड़-फोड़ या आगजनी करेगा, जनता की संपत्ति को नष्ट करेगा तो सरकार ऐसी किसी भी हरकत को बर्दाश्त नहीं करेगी।
हाल ही में सरकार ने निर्णय लिया है कि जिन्होंने आगजनी की थी उन्हीं से भरपाई की जाएगी”
प्रदेश सरकार की इसी नीति के तहत लखनऊ प्रशासन ने राजधानी लखनऊ की सड़कों पर हिंसा के आरोपी 57 लोगों की तस्वीरों वाले पोस्टर्स लगा दिए थे। इसे योगी सरकार के दंगाइयों के खिलाफ सख्त स्टैंड के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे लेकर राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई यूपी सरकार को फटकार
सोमवार को प्रदेश की योगी सरकार को झटका देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंसा के आरोपियों से वसूली वाले पोस्टर को हटाने का आदेश दिया। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर एवं जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। कोर्ट ने 16 मार्च से पहले अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा भी दायर करने को कहा है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश-योगी सरकार करेगी अपील
प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के विपरीत हिंसा के आरोपियों के पोस्टर नहीं हटाने का फैसला किया है। CM योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह फैसला किया गया। लखनऊ के लोक भवन में हुई इस उच्चस्तरीय बैठक में उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस कमिश्नर लखनऊ, जिलाधिकारी लखनऊ के अलावा कई बड़े अधिकारी भी शामिल हुए थे।
अधिकारियों की लोक भवन में हुई इस बैठक में फैसला लिया गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। बताया जा रहा है कि प्रदेश सरकार होली के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।
]]>आइए आपको बताते हैं कि यह पूरा माजरा है क्या ? दरअसल , सुप्रीम कोर्ट में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में इलैक्ट्रिक तकनीक अपनाने के मामले में सुनवाई चल रही थी। इसी दौरान सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश ने भारत सरकार के वकील से पूछा कि क्या परिवहन मंत्री आकर हमें इलैक्ट्रिक वाहनों की तकनीक के बारे में जानकारी दे सकते हैं। हालांकि इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश ने यह भी साफ कर दिया कि इसे समन नहीं बल्कि निमंत्रण के तौर पर लिया समझा जाए।
केंद्रीय मंत्री को निमंत्रण देते समय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि उन्हें लगता है कि अधिकारियों से ज्यादा बेहतर तरीके से इस योजना की साफ तस्वीर मंत्री ही समझा सकते हैं।
लिखित में क्यों नहीं दिया सुप्रीम कोर्ट ने आदेश ?
सुप्रीम कोर्ट के इस वक्तव्य पर सरकार के वकील ने कहा कि अगर इस तरह से केंद्रीय मंत्री को अदालत में बुलाया जाएगा तो इसका राजनीतिक असर भी पड़ेगा। बाद में अदालत ने भी सरकारी वकील के तर्क को माना और इसलिए कोर्ट ने इस संबंध में कोई लिखित आदेश पारित नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया पूरा मामला
इस पूरे मामले पर टिप्पणी करते हुए बाद में शीर्ष अदालत ने यह भी साफ किया कि वो सरकार को कोई आदेश नहीं दे रहे हैं बल्कि सिर्फ यह समझना चाह रहे हैं कि इलैक्ट्रिक गाड़ियों के लिए सरकार के पास क्या योजना है ? कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्रीय मंत्री चाहे तो अपने किसी अधिकारी को भी सुप्रीम कोर्ट भेज सकते हैं जो हमें पूरी जानकारी और योजना से अवगत कराएं। इसके साथ ही कोर्ट ने एक बार फिर से यह साफ किया कि प्रदूषण को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
स्वीडन यात्रा पर है नितिन गडकरी
आपको बता दें कि इस समय केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी सड़क सुरक्षा पर आयोजित तीसरे उच्चस्तरीय वैश्विक सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वीडन की यात्रा पर है। जहां पर वो रोड सेफ्टी के लिए आयोजित अंतर्राष्ट्रीय परिषद के चर्चा सत्र में भाग ले रहे हैं।
]]>ये याचिका PIL Man के नाम से मशहूर हो चुके भाजपा नेता और एडवोकेट अश्वनी उपाध्याय ने दायर किया था. उपाध्याय जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर लगातार सरकार के मंत्रियों से भी मुलाकात कर रहे हैं. हाल ही में अश्वनी उपाध्याय ने इस कानून को लेकर PMO में भी प्रजेंटेशन दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में अश्वनी उपाध्याय ने बताया कि बम विस्फोट की तुलना में जनसंख्या विस्फोट अधिक खतरनाक है. आपको बता दें कि दिल्ली हाइकोर्ट ने पहले जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग करने वाली अश्वनी उपाध्याय की याचिका को खारिज कर दिया था.
दरअसल , भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय लगातार प्रयास कर रहे हैं कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सरकार एक ठोस कानून बनाये. गिरिराज सिंह और संजीव बालियान समेत मोदी सरकार के कई मंत्री और NDA के दर्जनों सांसद भी इस तरह के कानून के पक्ष में है .
1974 से हम लोग प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं और पर्यावरण संरक्षण के लिए पिछले पांच वर्ष में विशेष प्रयास भी किया गया लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और मृदा प्रदूषण की समस्या कम नहीं हो रही है और इसका मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है .
वर्तमान समय में 124 करोड़ भारतीयों के पास आधार है, लगभग 20% नागरिक (विशेष रूप से बच्चे) बिना आधार के हैं तथा पांच करोड़ बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये अवैध रूप से भारत में रहते हैं. इससे स्पष्ट है कि हमारे देश की कुल जनसंख्या 130 करोड़ नहीं बल्कि 150 करोड़ से ज़्यादा है और हम चीन से बहुत आगे निकल चुके हैं. यदि संसाधनों की बात करें तो हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की लगभग 2% है, पीने योग्य पानी लगभग 4% है, और जनसंख्या दुनिया की 20% है. यदि चीन से तुलना करें तो हमारा क्षेत्रफल चीन का लगभग एक तिहाई है और जनसँख्या वृद्धि की दर चीन की तीन गुना है. चीन में प्रति मिनट 11 बच्चे और भारत में प्रति मिनट 33 बच्चे पैदा होते हैं.
जल-जंगल और जमीन की समस्या, रोटी-कपड़ा और मकान की समस्या, गरीबी और बेरोजगारी की समस्या, भुखमरी और कुपोषण की समस्या तथा वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की समस्या का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है. टेम्पो-बस और रेल में भीड़, थाना-तहसील और जेल में भीड़ तथा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भीड़ का मूल कारण जनसँख्या विस्फोट है. चोरी-डकैती और झपटमारी, घरेलू हिंसा और महिलाओं पर शारीरिक-मानसिक अत्याचार तथा अलगाववाद कट्टरवाद और पत्थरबाजी का मूल कारण भी जनसंख्या विस्फोट है. चोर-लुटेरे, झपटमार, जहरखुरानी करने वालों, बलात्कारियों और भाड़े के हत्यारों पर सर्वे करने से पता चलता है कि 80% से अधिक अपराधी ऐसे हैं जिनके माँ-बाप ने “हम दो- हमारे दो” नियम का पालन नहीं किया. इन तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत की 50% से अधिक समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है.
अंतराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण भी जनसंख्या विस्फोट है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम 103वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 140वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में 53वें स्थान पर, यूथ डेवलपमेंट इंडेक्स में 134वें स्थान पर, होमलेस इंडेक्स में 8वें स्थान पर, लिंग असमानता में 76वें स्थान पर, न्यूनतम वेतन में 64वें स्थान पर, रोजगार दर में 42वें स्थान पर, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 43वें स्थान पर, फाइनेंसियल डेवलपमेंट इंडेक्स में 51वें स्थान पर, करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में 78वें स्थान पर, रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में 66वें स्थान पर, एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर तथा पर कैपिटा जीडीपी में 139वें स्थान पर हैं लेकिन जमीन से पानी निकालने के मामले में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं, जबकि हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की 2 % तथा पीने योग्य पानी 4% है. प्रत्येक वर्ष हम लोग 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाते हैं और प्रदूषण नियंत्रण को लेकर पिछले 5 साल में बहुत से प्रयास भी किये गये हैं लेकिन जनसंख्या विस्फोट के कारण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इसका मूल कारण भी जनसँख्या विस्फोट है इसलिए चीन की तर्ज पर एक कठोर जनसँख्या नियंत्रण कानून के बिना स्वच्छ भारत और स्वस्थ भारत अभियान का 100% सफल होना मुश्किल है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशानुसार हम लोग प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर को महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाते हैं लेकिन महिलाओं पर हिंसा बढ़ती जा रही है और इसका मुख्य कारण भी जनसंख्या विस्फोट है. बेटी पैदा होने के बाद महिलाओं पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार किया जाता है, जबकि बेटी पैदा होगी या बेटा, यह महिला नहीं बल्कि पुरुष पर निर्भर करता है. कुछ लोग तो 3-4 बेटियां पैदा होने के बाद पहली पत्नी को छोड़ देते हैं और बेटे की चाह में दूसरा विवाह कर लेते हैं. बेटियों को बराबरी का दर्जा मिले, बेटियों का स्वास्थ्य ठीक रहे, बेटियां सम्मान सहित जिंदगी जीयें तथा बेटियां खूब पढ़ें और बेटियां भी आगे बढ़ें, इसके लिए चीन की तर्ज पर एक प्रभावी और कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना बहुत जरूरी है.
एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान तो सफल हो सकता है लेकिन विवाह के बाद बेटियों पर होने वाले अत्याचार को नहीं रोका जा सकता है. 3-4 बेटियां पैदा होने के बाद महिलाओं पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार किया जाता है, जबकि बेटी पैदा होगी या बेटा, यह महिला नहीं बल्कि पुरुष पर निर्भर है. बहुत से लोग बेटे की चाह में बहुविवाह भी करते हैं, बेटे-बेटियों में गैर-बराबरी बंद हो, बेटे-बेटियों को बराबर सम्मान मिले, बेटियां पढ़ें, बेटियां आगे बढ़ें और बेटियां सुरक्षित भी रहें, इसके लिए आगामी संसद सत्र में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना चाहिए.
टैक्स देने वाले लोग हम दो-हमारे दो नियम का पालन करते हैं लेकिन मुफ्त में रोटी कपड़ा मकान लेने वाले जनसंख्या वृद्धि कर रहे हैं. हजारो साल पहले भगवान राम ने हम दो-हमारे दो नियम की शुरुआत की था और आम जनता को संदेश देने के लिए लक्षमण, भरत और शत्रुघन सहित स्वयं “हम दो-हमारे दो” नियम का पालन किया था, जबकि उस समय जनसंख्या की समस्या इतनी खतरनाक नहीं थी. सभी राजनीतिक दल स्वीकार करते हैं कि जनसंख्या विस्फोट वर्तमान समय में बम विस्फोट से भी अधिक खतरनाक है. इसलिए चीन की तर्ज पर एक प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किये बिना रामराज्य अर्थात स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, साक्षर भारत, संपन्न भारत, समृद्ध भारत, सबल भारत, सशक्त भारत, सुरक्षित भारत, समावेशी भारत, स्वावलंबी भारत, स्वाभिमानी भारत, संवेदनशील भारत तथा भ्रष्टाचार और अपराध-मुक्त भारत का निर्माण मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही अटल जी द्वारा बनाये गए 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने 2 वर्ष तक अथक परिश्रम और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद संविधान में आर्टिकल 47A जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था जिसे आज तक लागू नहीं किया गया. अब तक 125 बार संविधान में संशोधन हो चुका है, कई बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बदला जा चुका है, सैकड़ों नए कानून बनाये गए लेकिन देश के लिए सबसे ज्यादा जरुरी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया, जबकि “हम दो – हमारे दो” कानून से देश की 50% समस्याओं का समाधान हो जाएगा.
अटल जी द्वारा 20 फरवरी 2000 को बनाया गया संविधान समीक्षा आयोग भारत का सबसे प्रतिष्ठित आयोग है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वेंकटचलैया इसके अध्यक्ष तथा जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस पुन्नैया इसके सदस्य थे. भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और संविधान विशेषज्ञ केशव परासरन तथा सोली सोराबजी और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप इसके सदस्य थे. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष संगमा जी इसके सदस्य थे. सांसद सुमित्रा जी भी इस आयोग की सदस्य थी. वरिष्ठ पत्रकार सीआर ईरानी और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे वरिष्ट नौकरशाह आबिद हुसैन भी इस आयोग के सदस्य थे.
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
वेंकटचलैया आयोग ने 2 वर्ष तक कड़ी मेहनत और सभी सम्बंधित पक्षों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद 31 मार्च 2002 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी था. इसी आयोग की सिफारिश पर मनरेगा, राईट टू एजुकेशन, राईट टू इनफार्मेशन और राईट टू फूड जैसे महत्वपूर्ण कानून बनाये गए लेकिन जनसंख्या नियंत्रण कानून पर संसद में चर्चा भी नहीं हुयी. इस आयोग ने मौलिक कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए भी महत्वपूर्ण सुझाव दिया था जिसे आजतक लागू नहीं किया गया. वेंकटचलैया आयोग द्वारा चुनाव सुधार प्रशासनिक सुधार और न्यायिक सुधार के लिए दिए गए सुझाव भी आजतक पेंडिंग हैं.
यदि 2004 में भाजपा की सरकार बनती तो अटल जी द्वारा बनाये गए संविधान समीक्षा आयोग की सुझावों पर संसद में जरुर बहस होती और जनसंख्या नियंत्रण कानून भी बनाया जाता लेकिन भाजपा हार गयी और वोटबैंक राजनीति के कारण कांग्रेस ने वेंकटचलैया आयोग के सुझावों पर संसद में चर्चा करने की बजाय चुनिंदा लोकलुभावन सुझावों को ही लागू किया, इसलिए युग दृष्टा अटल जी और करोड़ों भारतीयों की भावनाओं का सम्मान करते हुए संविधान समीक्षा आयोग के सुझावों को संसद के पटल पर रखना चाहिए और चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार के साथ-साथ जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना चाहिए.
लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता सांसद और विधायक, बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री, पर्यावारणविद, शिक्षाविद, न्यायविद, विचारक और पत्रकार इस बात से सहमत हैं कि देश की 50% से ज्यादा समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है. जब तक 2 करोड़ बेघरों को घर दिया जायेगा तब तक 10 करोड़ बेघर और पैदा हो जायेंगे इसलिए एक नया कानून ड्राफ्ट करने में समय खराब करने की बजाय चीन के जनसंख्या नियंत्रण कानून में ही आवश्यक संशोधन कर उसे लोकसभा में पेश करना चाहिए. कानून मजबूत और प्रभावी होना चाहिये और जो व्यक्ति इस कानून का उल्लंघन करे उसका राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता, बिजली कनेक्शन और मोबाइल कनेक्शन बंद करना चाहिए. इसके साथ ही कानून तोड़ने वालों पर सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने तथा पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना चाहिए. ऐसे लोगों को सरकारी स्कूल हॉस्पिटल सहित अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित करना चाहिये और 10 साल के लिए जेल भेजना चाहिए.
युग दृष्टा अटल जी के अधूरे सपने को साकार करना ही उन्हें सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी इसलिए उनके द्वारा बनाये गए वेंकटचलैया आयोग के सुझावों पर विस्तृत चर्चा करना चाहिए. एक प्रभावी जनसँख्या नियंत्रण कानून के बिना रामराज्य नामुमकिन है, इसलिए गृह मंत्रालय को आगामी संसद सत्र में संविधान संशोधन करने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने के लिए बिल पेश करना चाहिए. 11 सदस्यीय वेंकटचलैया आयोग (4 जज, 3 संविधान विशेषज्ञ, 2 सांसद, 1 पत्रकार और 1 नौकरशाह) ने 2 साल विस्तृत विचार-विमर्श करने के बाद संविधान संशोधन करने और जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था इससे स्पष्ट है कि यह कानून किसी भी अंतराष्ट्रीय संधि या मानवाधिकार के खिलाफ नहीं है. वेंकटचलैया आयोग के सुझाव को लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से 29 मई को जबाब मांगा है इससे भी स्पष्ट है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लघंन नहीं करता है.
धन्यवाद और आभार
अश्विनी उपाध्याय
प्रवक्ता भाजपा दिल्ली