दरअसल , पूर्व केंद्रीय मंत्री , कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी प्रदेश के उपराज्यपाल किरण बेदी के व्यवहार से काफी खफा है और इसलिए उन्होंने उपराज्यपाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
पुडुचेरी में Go Back Kiran Bedi की तख्तियां हाथ में लेकर राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाले सेक्युलर डेमोक्रेटिक अलायंस- SDA के नेता शुक्रवार से ही उपराज्यपाल के खिलाफ धरने पर बैठे हुए हैं। किरण बेदी के खिलाफ धरने पर बैठे हुए मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी समेत तमाम नेता केंद्र सरकार से किरण बेदी को हटाने की मांग कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री लगा रहे हैं उपराज्यपाल पर आरोप
दरअसल, पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी उपराज्यपाल पर आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि किरण बेदी संवैधानिक सरकार को काम करने नहीं दे रही हैं और केंद्र सरकार के इशारे पर उनके काम में जानबूझकर बाधा पैदा कर रही हैं, उन्होंने अपने पद का गलत इस्तेमाल किया है इसलिए उनको इस पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।
मुझे बदनाम कर रही हैं किरण बेदी – नारायणसामी
शुक्रवार से उपराज्यपाल बेदी के आधिकारिक निवास- राजनिवास पर अपने नेताओं के साथ धरने पर बैठे पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने उपराज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा, ” किरण बेदी उनकी छवि को खराब कर रही हैं, उन्होंने मेरे और मेरे नजदीकियों पर जमीन हथिया लेने के आरोप लगाए हैं। ये बेबुनियाद हैं, अगर इसका सबूत है तो वो पेश करें मैं तुरंत सीएम पद से इस्तीफा देने को तैयार हूं। लेकिन अगर मैं सही साबित हुआ तो क्या वो अपना पद छोड़ देंगी।”
उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच लंबे समय से जारी है तनाव
आपको बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के उपराज्यपाल किरण बेदी और मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी के बीच लंबे समय से तनाव बना हुआ है। अपनी सक्रियता के लिए मशहूर रिटायर्ड IPS अधिकारी किरण बेदी सीधे अधिकारियों, कर्मचारियों और जनता के साथ संवाद करती रहती हैं। लेकिन उनके कामकाज के रवैये से खफा मुख्यमंत्री उन पर अधिकारियों को डराने-धमकाने और काम ना करने देने के आरोप लगाते रहते हैं।
कोर्ट में लगाई गुहार- राष्ट्रपति से भी की मांग
मुख्यमंत्री नारायणसामी उपराज्यपाल किरण बेदी के खिलाफ कोर्ट से भी गुहार लगा चुके हैं । हाल ही में मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी उपराज्यपाल बेदी को तुरंत वापस बुलाने की मांग भी की थी। सीएम ने आरोप लगाया कि किरण बेदी उनके मंत्रिमंडल के विभिन्न कल्याणकारी उपायों और फैसलों को लागू करने में ‘बाधा’ डाल रही हैं। वह मनमाने ढंग से काम कर रही हैं और एक समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रही हैं इसलिए उन्हें तत्काल प्रभाव से वापस बुलाया जाए।
]]>उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। पीएम मोदी और सीएम योगी के बीच यह मुलाकात प्रधानमंत्री कार्यालय -साउथ ब्लॉक में हुई। यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय ने सोशल मीडिया पर मुलाकात की तस्वीरों को शेयर करते हुए इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री योगी ने नववर्ष की शुभकामनाएं दी। आधिकारिक तौर पर भले ही इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया जा रहा हो लेकिन दो वरिष्ठ नेताओं की मुलाकात के कई और मतलब मायने भी निकलते ही हैं खासतौर से जब उनमें से एक देश का प्रधानमंत्री हो और दूसरा देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश से जुड़े कई अहम मसलों की जानकारी इस मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को दी।
मंत्रिमंडल विस्तार और कोरोना वैक्सीन लगाने की तैयारियों पर चर्चा
योगी ने पीएम मोदी को उत्तर प्रदेश के ताजा राजनीतिक हालात की जानकारी दी। साथ ही उन्होंने प्रदेश में होने वाले विधान परिषद और पंचायत चुनाव पर भी पीएम से चर्चा की। उन्होंने कोरोना वैक्सीन लगाए जाने को लेकर प्रदेश सरकार की तैयारियों की जानकारी भी पीएम को दी। हालांकि कोरोना वैक्सीन के मुद्दें पर प्रधानमंत्री मोदी सोमवार को देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ अलग से भी बैठक करने जा रहे हैं।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा काफी जोर-शोर से हो रही है। बताया जा रहा है कि मकर संक्रांति के बाद प्रदेश के कई नेताओं का भाग्य खुल सकता है और कई मंत्रियों की सरकार से छुट्टी भी हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी ने अपने मंत्रियों के कामकाज के बारे में भी प्रधानमंत्री को जानकारी देते हुए मंत्रिमंडल फेरबदल पर भी चर्चा की। विधान परिषद चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन पर भी दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई। योगी ने वाराणसी में बन रहे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की प्रगति के बारे में भी पीएम को जानकारी दी।
वरिष्ठ पत्रकार संतोष पाठक के मुताबिक,
” मंत्रियों के कामकाज और प्रदर्शन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी गंभीर है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी से ही लोकसभा सांसद होने के कारण उन तक भी प्रदेश सरकार में शामिल नेताओं की जानकारी लगातार पहुंचती रहती है। ऐसे में जब 2022 का विधानसभा चुनाव काफी नजदीक आ गया है। पीएम मोदी भी चाहते हैं कि प्रदर्शन न करने वाले मंत्रियों की प्रदेश सरकार से छुट्टी कर अच्छे और युवा नेताओं को सरकार में शामिल किया जाए ताकि 2022 में लगातार दूसरी बार प्रदेश की जनता का आशीर्वाद भाजपा को मिले। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के बीच हुई आज की यह मुलाकात काफी अहम है। इसकी नींव कल अमित शाह और योगी के बीच हुई मुलाकत में ही डाल दी गई थी।”
बुधवार को अमित शाह और राष्ट्रपति कोविंद से हुई थी मुलाकात
इससे पहले बुधवार को दिल्ली पहुंच कर योगी आदित्यनाथ ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर , उन्हें भी नववर्ष की शुभकामनाएं दी। इसे औपचारिक मुलाकात बताया गया।
बुधवार को ही योगी ने गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की। शाह से मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालात, पंचायत चुनाव, विधान परिषद चुनाव के साथ-साथ मंत्रिमंडल फेरबदल पर भी चर्चा किए जाने की खबर है।
देश में किसान आंदोलन चल रहा है और देश के कई राज्यों के किसान खासकर पंजाब,हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा संसद के दोनों सदनों से पारित किए जाने के बाद राष्ट्रपति की सहमति से लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ ये किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए है। इस आंदोलन की शुरुआत एमएसपी अर्थात न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग के साथ हुए थी लेकिन सरकार द्वारा बातचीत करने के लिए तैयार हो जाने के बाद अब किसान नेता तीनों कानूनों को ही रद्द करने की मांग कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि शायद इन किसान संगठनों या किसान नेताओं को पहले यह लगता था कि मोदी सरकार उनसे बातचीत के लिए आगे नहीं आएगी इसलिए पहले लक्ष्य छोटा ही रखा गया था। वैसे भी एमएसपी की गारंटी की मांग का कोई बहुत ज्यादा महत्व नहीं था क्योंकि सरकार ने लगातार यह साफ कर दिया था कि एमएसपी की व्यवस्था से कोई छेड़-छाड़ नहीं होगी। वैसे भी मात्रा या प्रभाव भले ही कम ज्यादा होता रहे लेकिन यह तो सत्य है कि इस देश में किसान एक बड़ा वोट बैंक है और कोई भी सरकार अपने पर किसान विरोधी होने का ठप्पा नहीं लगाना चाहेगी। हालांकि इसके बावजूद यह भी एक सच्चाई है कि आजादी के बाद से ही देश के किसान ठगे गए हैं। सरकार की मंशा चाहे जो भी रही हो लेकिन इसी सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत कार्य कर रही व्यवस्था ने हमेशा किसानों के साथ छल ही किया है।
खेती-किसानी और राजनीतिक दल
देश के कई राज्यों के किसान जब इस ठंड में दिल्ली की सीमा पर बैठे थे । इसी दौरान 6 दिसंबर को देश के संविधान निर्माता कहे जाने वाले बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पूण्यतिथि आई और इस दिन देश के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने बाबा साहेब को नमन करते हुए उन्हे ऋद्धांजलि दी और उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लिया। आंदोलन के इस दौर में उन्ही बाबा साहेब के एक कथन को याद करना बहुत जरूरी है। भारतीय संविधान के बारे में उन्होने कहा था कि , “ मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा।’
संविधान को अमल में लाने वाले का मतलब केवल सत्ताधारी दल से ही नहीं है बल्कि देश के वो तमाम राजनीतिक दल जिनके प्रतिनिधियों को चुन कर देश की जनता संसद, विधानसभा और स्थानीय निकायों में भेजती है , ये सब देश की सरकार का एक अभिन्न हिस्सा है। राजनीतिक दल मिलकर विधायिका को चलाते हैं। सत्ताधारी दल के पास भले ही बहुमत हो लेकिन विपक्षी दलों के सहयोग के बिना सदन चलाना संभव ही नहीं है।
सत्ता में रह चुका है देश का हर राजनीतिक दल
देश जब आजाद हुआ तो महात्मा गांधी की सलाह पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मिले-जुले मंत्रिमंडल का गठन किया था। इसमें कांग्रेस के विरोधी खेमे के भी कई नेता मंत्री थे। बाद में सरकार के कामकाज को लेकर जब मतभेद बढ़ते गए तो ये नेता एक-एक करके सरकार से अलग होते गए और अपनी सरकार विरोधी नीतियों को लेकर जनता के सामने गए। चुनाव दर चुनाव इन्हे धीरे-धीरे जनसमर्थन मिला। 1967 में कई राज्यों में विरोधी दलों की सरकार बनी। आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में विरोधी दलों ने मिलकर जनता पार्टी के रुप में चुनाव लड़ा और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनाई। 1989 में वाम मोर्चा और भाजपा के सहयोग से विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनाई। 1996 में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए गैर भाजपाई दलों ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। 1998 से 2004 तक भाजपा के नेतृत्व में और 2004 से 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व में देश के 2 दर्जन से ज्यादा राजनीतिक दलों ने केंद्र की सत्ता का सुख भोगा । वास्तव में एक-दो राजनीतिक दलों को छोड़कर शायद ही देश का कोई कोई राजनीतिक दल बचा हो जिसने कभी न कभी केंद्र की सत्ता में भागीदारी और हिस्सेदारी न की हो लेकिन इसके बावजूद उनके दोहरे रवैये की वजह से देश को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
चुनाव हार कर विपक्ष में बैठते ही क्यों बदल जाते हैं नेताओ के सुर ?
किसान आंदोलन हो या कोई अन्य मुद्दा, देश के राजनीतिक दल हमेशा जनता के साथ छलावा ही करते नजर आते हैं। ये राजनीतिक दल जब सत्ता में होते हैं तो आर्थिक सुधार से जुड़ी नीतियों को तेजी से लागू करते हैं और विपक्ष में जाते ही उनका विरोध करने लगते हैं। कृषि से जुड़े इन 3 कानूनों को ही देखा जाए तो अध्यादेश आने के समय से ही विरोधी दल मनमोहन सरकार के समय विपक्ष में बैठे स्वर्गीय सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के भाषण को वायरल कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के पुराने स्टैंड को बताते हुए विरोधी दलों के दोहरे रवैये को लेकर जमकर निशाना साधा। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस ने खुद अपने 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में कृषि से जुड़े APMC एक्ट को समाप्त करने की बात कही थी। कृषि मंत्री के तौर पर पिछली सरकार में एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने लगातार इन सुधारों की वकालत की थी। आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार ने 23 नवंबर 2020 को नए कृषि कानूनों को नोटिफाई करके दिल्ली में लागू कर दिया है। लालू और मुलायम के समर्थन पर टिकी देवगौड़ा, गुजराल और मनमोहन सरकार के दौरान भी आर्थिक सुधार की नीतियों को तेजी से लागू किया गया। लेकिन आज ये सभी दल सिर्फ विरोध करने के नाम पर विरोध करने की खानापूर्ति कर रहे हैं और इसका नुकसान देश की जनता को उठाना पड़ रहा है। किसान भड़के हुए हैं और आंदोलनरत है तो वहीं इनकी वजह से लाखों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही आंदोलन और बंद की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को भी हजारों करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है।
दोहरा रवैया छोड़ कर देश को सही विकल्प तो दे राजनीतिक दल
मुद्दा यह नहीं है कि देश के राजनीतिक दल किन नीतियों का समर्थन करते हैं और किनका विरोध । असली मुद्दा तो यह है कि देश के राजनीतिक दल , देश की जनता के साथ छलावा करके देश के संविधान और कानून का मखौल क्यों उड़ाते हैं ? सनद रहे कि इस देश में अधिकांश राजनीतिक समस्या की जड़ इन राजनीतिक दलों का दोहरा रवैया ही है जिसकी वजह से जनता का विश्वास भारतीय संविधान और सरकार की कार्यप्रणाली से उठता जा रहा है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि देश के सभी राजनीतिक दल यह तय करें कि उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क न हो । अगर आप सत्ता में रहते हुए किसी कानून की वकालत करते हो , सदन में मत के दौरान किसी बिल का खुल कर या मौन समर्थन करते हो तो फिर बाहर सड़क पर विरोध का नाटक क्यों ? जनता को यह खुल कर देखने दो कि किस राजनीतिक दल की विचारधारा क्या है ? ताकि जब उसे विकल्प का चयन करना पड़े तो उसकी आंखों के सामने तस्वीर साफ हो और फिर भी उसे अगर कुछ नया चाहिए तो आंदोलन , भारत बंद, सड़क जाम, रेल रोको अभियान और हिंसा की बजाय चुनाव के दौरान ही शांतिपूर्ण तरीके से विकल्प खड़ा कर दे।
( लेखक– संतोष पाठक, वरिष्ठ टीवी पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं। ये पिछले 15 वर्षों से दिल्ली में राजनीतिक पत्रकारिता कर रहे हैं। )
]]>कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांघी, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार , सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई महासचिव डी राजा और डीएमके नेता टीआर बालू बुधवार को शाम 5 बजे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर किसानों के समर्थन में इस बिल को रद्द करने की मांग करेंगे।
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने बताया कि , ‘‘हम पांचों लोग राष्ट्रपति से भेंट करने से पहले बैठक करेंगे और अपनी रणनीति तय करेंगे। हमने सभी विपक्षी नेताओं से बात की है और अगले कदम को लेकर फैसला किया है। कोविड-19 की स्थिति के कारण हमारे प्रतिनिधिमंडल में केवल 5 सदस्य ही होंगे, हालांकि हम कोशिश करेंगे कि कुछ और नेताओं को इसमें शामिल होने दिया जाए। ऐसी स्थिति में हमें नेताओं को दिल्ली बुलाना होगा क्योंकि वे अपने संबंधित राज्यों में हैं।’’
हालांकि राष्ट्रपति के साथ मुलाकात से पहले विरोधी दलों की बैठक होने की संभावना कम ही है क्योंकि अधिकांश नेता दिल्ली से बाहर अपने-अपने गृह राज्य में ही है।
आपको बता दें कि कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर सरकार ने सितंबर में तीन कृषि कानूनों को संसद पारित करवा कर लागू किया था। सरकार का यह दावा है कि इन कानूनों के बाद बिचौलिए की भूमिका खत्म हो जाएगी और देश के सभी किसानों को देशभर में कहीं पर भी अपने उत्पाद को बेचने की अनुमति होग। जाहिर तौर पर इसका फायदा देश के किसानों को होगा। लेकिन देश के कई किसान संगठन खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जुड़े किसान नेता लगातार इस कानून का विरोध कर रहे हैं और ये पिछले 14 दिन से दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं।
]]>मोदी सरकार के अध्यादेश पर लग गई राष्ट्रपति की मुहर
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार को ही देर रात कोविड -19 महामारी से लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षा देने वाले अध्यादेश – महामारी रोग ( संशोधन) अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दे दी। महामारी रोग अधिनियम- 1897 में संशोधन वाले अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अब यह कानून बन गया है। आपको बता दें कि देशभर से डॉक्टरों,नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा लगातार की जा रही मांग के मद्देनजर ही मोदी कैबिनेट ने बुधवार को स्वास्थ्यकर्मियों और संपत्ति की रक्षा के लिए महामारी रोग ( संशोधन) अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी थी।
डॉक्टरों-नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने वालों की अब खैर नही
केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश के जरिए लागू किये गए कानून के मुताबिक अब डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने वालों की खैर नहीं। ऐसा हिंसक कार्य करने या उसमें सहयोग करने वाले लोगों को 3 महीने से लेकर 5 साल तक के लिए जेल जाना पड़ सकता है। इसके साथ ही 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
गंभीर चोट या जख्म पहुंचाने पर दोषी को 7 साल तक कि सजा हो सकती है । ऐसे अपराधी को 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है। इसके साथ ही अपराधी को पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा भी देना पड़ेगा। पीड़ित की संपत्ति को पहुंचे नुकसान के बाजार मूल्य की दोगुनी राशि मुआवजे के तौर पर अपराधी को पीड़ित को देनी होगी।
सबसे खास बात यह है कि अब स्वास्थ्यकर्मियों (डॉक्टरों, नर्सों आदि) पर हमले को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बना दिया गया है।
]]>दरअसल , अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सम्मान में मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में डिनर पार्टी का आयोजन किया था , जिसमें विभिन्न क्षेत्रों की नामचीन हस्तियों को भी बुलाया गया था । ज़ी न्यूज़ के मुख्य संपादक के तौर पर सुधीर चौधरी भी इसमें आमंत्रित थे। वहां उन्होंने एक सेल्फी ली और उसे सोशल मीडिया पर The most powerful selfie के शीर्षक के साथ शेयर कर दिया। आप खुद देखिए , उस सेल्फी में कौन-कौन शामिल हैं और खुद सुधीर चौधरी ने उस पर क्या लिखा।
इस सेल्फी को शेयर करते ही ट्विटर और फेसबुक पर कमेंट्स की बाढ़ सी आ गई । वैसे सही मायनों में देखा जाए तो पहली नजर में यह हेडिंग आपको सिर्फ आकर्षक और लुभाने वाली लग सकती है लेकिन अगर विश्लेषण करें तो इन शब्दों के अपने मायने निकलते हैं।
गौर कीजिए इस सेल्फी में दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश का राष्ट्रपति है , दुनिया के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश भारत का प्रधानमंत्री है और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रतिनिधि एक लोकप्रिय संपादक है । तो बन गई न यह सबसे ताकतवर सेल्फी।
]]>देश आज अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति कृतज्ञ है। देश भर में लोग बापू को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रहे है। आपको बता दें कि 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा के लिए जाते हुए महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी।
बापू की याद में उन्हे नमन करते हुए दिल्ली में राजघाट पर गणमान्यों ने बापू को श्रद्धांजलि दी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने बापू को श्रद्धासुमन अर्पित किये. आपको बता दें कि गुरुवार को बापू की 72वीं पुण्यतिथि है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर राजघाट जाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की। इससे पहले पीएम मोदी ने ट्वीट कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन किया था।
केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राजघाट पहुंचकर महात्मा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
इनके अलावा गुरुवार को राजघाट पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी बापू को श्रद्धांजलि देने पहुंचे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत देश के आम और खास लोगों ने बापू को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये.
]]>आपके वाईस-चांसलर भैया के खिलाफ तो आरोपों की फेहरिश्त ख़त्म ही नहीं हो रही है…
महात्मा गांधी सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, मोतीहारी. जब से बना तब से विवादों के समंदर में डूबता-तैरता, किसी तरह अपना वजूद बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहा है. इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए चंपारण की जनता ने अथक मेहनत की थी. लेकिन, आज भी यह सेंट्रल यूनिवर्सिटी राजनीति का ऐसा अखाड़ा बना हुआ है, जहां चाहे कोई भी जीते, हारती हर बार चंपारण की जनता है.
अब यहाँ एक नए वीसी आए है. संजीव शर्मा. कुमार विश्वास के भाई है. मेरठ के चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से आए है. अब जो जानकारी मिल रही है, इनके खिलाफ भी कई आरोप है. यहाँ तक कि इनकी नियुक्ति की वैधता भी चुनौती दी जा रही है. वित्तीय-प्रशासनिक अनियमितता के आरोप लगाए जा रहे है.
मैं ये बातें तो अपनी तरफ से लिख रहा हूँ और न ही मेरा कोई परसेप्शन है, सिवाए एक परसेप्शन के कि चूंकि वे कुमार विश्वास के भाई है और कुमार जी उर्फ राष्ट्रकवि की निष्ठा फिलहाल जगजाहिर है. तो मैं इसमे पोलिटिकल कनेक्शन भी देख पा रहा हूं.
फिलहाल, नीच आरोपों का विवरण दे रहा हूं, जो कुछ प्रोफेसरों ने ही लिख कर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मानवा संसाधन मंत्री को भेजा है.ये अलग बात है कि अब तक उस पर कोई एक्शन नहीं लिया जा सका है. क्यों नहीं लिया जा सका है, इसमे भी मैं पोलिटिकल कनेक्शन ही देखता हूँ.
फिर से ध्यान दीजिए कि महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर, हमारे प्रिय राष्ट्रकवि उर्फ कुमार विश्वास के भैया जी है. फिलहाल, आरोप पत्र पर नजर डालिए…
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Note – आम आदमी पार्टी से नाराज चल रहे कुमार विश्वास से एक पत्रकार शशि शेखर ने उनके भाई को लेकर कुछ ऐसे सवाल पूछ डाले हैं जिसे लेकर काफी चर्चा हो रही है….हम फेसबुक पर लिखे उनके कथन को यहां प्रकाशित कर रहे हैं. अगर कुमार विश्वास या उनके भाई की तरफ से इसे लेकर कोई जवाब आता है तो हम उसे भी अपनी साइट पर छापने का वादा करते हैं. हमारा मेल आईडी है- onlypositivekhabar@gmail.com
]]>सूत्रों के मुताबिक संसद का यह बजट सत्र दो चरणों में होगा। पहले चरण का सत्र 31 जनवरी से शुरू होकर 7 फरवरी तक चलेगा वहीं दूसरे चरण का सत्र मार्च के दूसरे सप्ताह में शुरू होगा.
संसदीय और संवैधानिक परम्परा के मुताबिक साल का पहला सत्र होने की वजह से इसकी शुरूआत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से होगी। राष्ट्रपति कोविंद संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करेंगे। अपने संबोधन के दौरान राष्ट्रपति कोविंद मोदी सरकार की योजनाओं का खाका भी पेश करेंगे।
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