इस बार संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू होगा। पहले दिन यानि 29 जनवरी को ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संसद के दोनों सदनों को संबोधित करेंगे। बजट सत्र दो हिस्सों में होगा। पहला हिस्सा 29 जनवरी को शुरू होकर 15 फरवरी तक चलेगा। वहीं बजट सत्र का दूसरा हिस्सा 8 मार्च से शुरू होकर 8 अप्रैल तक चलेगा।
एक फरवरी को पेश किया जाएगा आम बजट
मोदी सरकार 1 फरवरी को पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में अगले वर्ष के लिए आम बजट पेश करेगी। आपको बता दें कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पिछले साल अक्टूबर में ही 2021-22 के लिए बजट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा और वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का तीसरा बजट होगा। इस बार का बजट कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि कोरोना संकट को देखते हुए एक तरफ जहां सरकार की आमदनी प्रभावित हुई है वहीं दूसरी तरफ खर्चों को लगातार बढ़ाने की जरूरत भी है ताकि अर्थव्यवस्था में तेजी आ सके।
कोरोना वायरस से जुड़े सभी प्रोटोकॉल का किया जाएगा पालन
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संसद सत्र की तारीखें संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति अर्थात CCPA ही तय करता है। बताया जा रहा है कि सीसीपीए की सिफारिशों के मद्देनजर, राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदन 4-4 घंटे के लिए ही बैठक करेंगे। बैठक के दौरान न केवल दो गज दूरी का ख्याल रखा जाएगा बल्कि साथ ही सत्र के दौरान कोरोना वायरस से जुड़े सभी प्रोटोकॉलों का भी विशेष तौर पर पालन किया जाएगा।
]]>राज्यसभा में सपा सांसद जया बच्चन ने इस मसले को सदन में उठाते हुए कहा कि मुझे लगता है कि यह समय है जब लोग चाहते हैं कि सरकार उचित और निश्चित जवाब दे. इस प्रकार के लोगों (बलात्कारियों) को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है.
सरकार की ओर से जवाब देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस कृत्य ने पूरे देश को शर्मसार किया है. इसने सभी को आहत किया है. अभियुक्तों को उनके अपराध के लिए सबसे कठोर सजा दी जानी चाहिए. राजनाथ ने आगे कहा कि हम संसद में किसी भी चर्चा के लिए तैयार हैं और हम इसे लेकर कठोर कानून बनाने के पक्ष में हैं.
लोकसभा में रक्षा मंत्री ने कहा कि अगर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सदन में कठोर कानून बनाने पर सहमति बनेगी तो सरकार इसके लिए भी तैयार है. सिंह ने कहा कि इससे अधिक अमानवीय कृत्य नहीं हो सकता है. सभी शर्मसार और आहत हैं. उन्होंने आगे कहा कि निर्भया कांड के बाद इसी सदन में कठोर कानून बना था लेकिन उसके बाद भी इस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं.
]]>रविवार शाम चुनाव प्रक्रिया खत्म होने के बाद मनमोहन सिंह को कांग्रेस के टिकट पर राजस्थान से राज्यसभा का सदस्य चुन लिया गया है . भाजपा राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य मदन लाल सैनी के आकस्मिक निधन की वजह से यह सीट खाली हुई थी . भाजपा ने मनमोहन सिंह के खिलाफ अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा था, इस कारण उनका निर्वाचन निर्विरोध हो गया .
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत , उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट समेत कांग्रेस के कई नेताओं ने इस जीत पर पूर्व प्रधानमंत्री को बधाई दी है. राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने बधाई देते हुए ट्वीट किया कि मैं पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह को राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्विरोध चुने जाने पर बधाई देता हूं।
इससे पहले मनमोहन सिंह लगभग तीन दशकों से असम से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रहे हैं . उनका कार्यकाल 14 जून को समाप्त हो चुका था लेकिन इस बार असम से राज्यसभा में भेजे जाने लायक विधायक कांग्रेस के पास नहीं था.इसलिए उन्हे राजस्थान से राज्यसभा भेजे जाने का फैसला किया गया जहां इस समय बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार सत्ता में है.
राजस्थान से निर्विरोध निर्वाचन के बाद मनमोहन सिंह तीन अप्रैल, 2024 तक राज्यसभा सदस्य रहेंगे . उनके राज्यसभा में पहुंचने के बाद सदन में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी तो हो गई है लेकिन इसके साथ ही अब कांग्रेस के सामने नया संकट खड़ा हो गया है कि वो राज्यसभा में नेता विपक्ष किसे बनाए.
वर्तमान में गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के नेता के तौर पर विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन मनमोहन सिंह की वापसी के बाद उनका दावा स्वाभाविक रूप से इस पद के लिए मजबूत है . इसलिए जीतने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान के लिए फैसले की एक नई घड़ी आ गई है .
]]>भविष्य की नजर में आज का इतिहास।
आज का दिन सम्पूर्ण भारत, विशेषकर जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के नजरों में, स्वर्णिम कहलायेगा या काला दिवस यह भविष्य निर्णय करेगा । लेकिन यह पहला परिसीमन है जो संसद में इतनी आसानी से पास हो गया। जहां अन्य राज्यों के परिसीमिन के विरोध में लोगों ने जानें भी गँवाई वहीं आज के इस परिसीमन से अधिकांशतः जनता प्रसन्न ही दिख रही है। जम्मू एवं कश्मीर से शेष भारत के लोगों के लगाव का मूल्यांकन इस बात से भी की जा सकती है कि इसके परिसीमन की खुशी देश के विभिन्न भागों जैसे दिल्ली, बिहार, भोपाल, अहमदाबाद आदि में मनाई गई।
जहां विपक्षी दलों एवं जम्मू एवं कश्मीर के मुख्य राजनीतिक दल इस परिसीमन को जन विरोधी बता रही है वहीं राज्य में किसी तरह का उग्र विरोध नहीं दिखना या तो मोदी-शाह-डोवाल का कुशल प्रबंधन के रूप में देखा जाएगा या आम कश्मीरी अवाम का समर्थन के रूप में। मुझे लगता है कि इसके दोनों ही कारण हैं अर्थात अधिकांश कश्मीरियों का समर्थन भी है और अलगाववादियों से निपटने का कुशल प्रबंधन भी।
आज के दिन को मैं भाजपा के कुशल प्रबंधन के रूप में इसलिए भी देखता हूँ कि आज से पहले किसी कानूनविद या संविधान विशेषज्ञ ने आर्टिकल 370 एवं 35ए को समाप्त किये जाने का इतना सरल एवं सुगम मार्ग नहीं बताया था। जितने भी विशेसज्ञों को हमने सुना सब का यही मत था कि यह लगभग असंभव है क्योंकि पहले इसे राज्य की विधान सभा से पास कराना होगा।
आज का दिन इतिहास के पन्नों में जैसा भी लिखा जाए लेकिन आज इसे नेहरू जी की भूल के रूप में भी देख रहे हैं। क्योंकि जहां शेष भारत में प्रतिव्यक्ति सरकार 2 से तीन हजार खर्च करती है वहीं जम्मू एवं कश्मीर में यह राशि 15 हजार से ऊपर होने के बावजूद लोग शेष भारत से कम ही खुशहाल हैं। जितनी मेरी समझ है, इस राशि को देखकर लगता है कि आर्टिकल 370 कुछ लोगों के लिए नोट छापने की मशीन भी हो सकती है क्योंकि जिनके पुरखों ने कभी कोई उद्योग नहीं चलाया, कोई उच्च वेतन बाली नौकरी नहीं की उनका हजारों करोड़ का मालिक बनने में इन अनुच्छेदों का योगदान भी हो सकता है।
जो भी हो आज भारतवर्ष सचमुच कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल गया। परंतु कश्मीर का कुछ हिस्सा आज भी भारत से अलग है जिसपर पाकिस्तान का कब्जा है।
]]>लोकसभा में चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान के अनुच्छेद 370 को भारत तथा जम्मू कश्मीर को जोड़ने में रुकावट करार देते हुए कहा इस अनुच्छेद की अधिकतर धाराओं को समाप्त करके सरकार ऐतिहासिक भूल को सुधारने जा रही है .
गृह मंत्री ने सदन को आश्वासन दिया कि स्थिति सामान्य होते ही जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में इस सरकार को कोई परेशानी नहीं है . उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद भारत के संविधान के प्रावधान पूरे जम्मू कश्मीर पर लागू होंगे और इस तरह 35ए भी निष्प्रभावी हो गया .
आपको बता दे कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के मुताबिक एक नया केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख बनाया गया है जिसमें विधानसभा नहीं होगी वहीं जम्मू कश्मीर को भी केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है लेकिन इसमें विधानसभा भी होगी और मुख्यमंत्री भी बनेगा .
जम्मू कश्मीर की विधानसभा में चुने जाने वाले सीटों की कुल संख्या 107 होगी . इसके अलावा जब तक पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर संघ शासित प्रदेश के भू भाग का अधिग्रहण नहीं होता है और उस क्षेत्र में रह रहे लोग अपने प्रतिनिधि नहीं चुनते हैं तब तक विधानसभा में 24 सीटें खाली रहेंगी .
]]>धारा 370 भी हुआ खत्म
इसके साथ ही गृहमंत्री अमित शाह द्वारा जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प भी पेश किया गया . इस संकल्प को राष्ट्रपति की ओर से मंजूरी दे दी गई है.
यह कानून 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा . आपको बता दें कि तीन तलाक बिल को मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में पास करवाने की पूरी कोशिश कर चुकी थी लेकिन हर बार यह राज्यसभा में आकर अटक जाता था . इसलिए सरकार को बार-बार अध्यादेश लाना पड़ता था .
दूसरे कार्यकाल में सरकार ने लोकसभा में इसे भारी बहुमत से पारित करवा कर राज्यसभा में पेश किया और बहुमत न होने के बावजूद बेहतर फ्लोर मैनेजमेंट के जरिए इसे पास करवाने में कामयाबी हासिल की.
25 जुलाई को इसे लोकसभा में पास करवाया गया था और 30 जुलाई को राज्यसभा ने इसे पास किया था . तीन तलाक बिल के कानून बनते ही अब 19 सितंबर 2018 के बाद से तीन तलाक के जितने भी मामले सामने आए हैं, उन सभी का निपटारा इसी कानून के तहत किया जाएगा.
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने इस पर सख्त कानून बनाने का फैसला किया था .
]]>राज्यसभा में बिल के पक्ष में 99 सांसदों ने वोट किया जबकि बिल के विरोध में 84 सांसद रहे. राज्यसभा में बहुमत न होने के बावजूद इस बिल को पारित करवा लेना मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी है . इसे जबरदस्त प्लानिंग और फ्लोर मैनेजमेंट का कमाल भी माना जा सकता है.
आपको बता दें कि मुस्लिम महिलाएं इसके लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही थीं . मोदी सरकार ने उनका साथ देते हुए तीन तलाक विधेयक को पारित कराने के लिए अपने पहले कार्यकाल में भी प्रयास किये थे लेकिन हर बार मामला राज्यसभा में आकर अटक जाता था . इसी वजह से बार-बार अध्यादेश का सहारा लेना पड़ रहा था .
लोकसभा इसी विधेयक को पिछले सप्ताह ही पारित कर चुकी है और अब राज्यसभा की भी मंजूरी मिल जाने के बाद इसके कानून बनने का रास्ता भी साफ हो गया है . राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ ही यह कानून के रूप में लागू हो जाएगा.
सुबह विधयेक को चर्चा और पारित करने के लिए राज्यसभा में पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक संबंधी विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के मकसद से लाया गया है और उसे किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिये . प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसले में इस प्रथा पर रोक लगाने के बावजूद तीन तलाक की प्रथा जारी है क्योंकि इसे रोकने के लिए कोई कानून प्रावधान नहीं है.
]]>यह विधेयक पिछली लोकसभा में भी पारित हुआ था पर राज्यसभा ने इसे लौटा दिया था. सरकार कुछ बदलावों के साथ यह बिल दोबारा लेकर आई है.
25 जुलाई को लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पर विचार कर इसे पारित करने के लिए पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लैंगिक न्याय के लिए तीन तलाक विधेयक को जरूरी बताया था। इस विधेयक में तीन तलाक के मामलों में पति को तीन साल जेल की सजा का प्रावधान रखा गया है।
कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विधेयक लाने की बात को दोहराते हुए कहा कि इस मुद्दे पर तीन बार अध्यादेशों को इसलिए लागू किया गया क्योंकि पिछली मोदी सरकार द्वारा लाए गए इसी तरह के विधेयक को संसद की स्वीकृति नहीं मिली थी। इसके बाद नई सरकार द्वारा जून में एक ऐसा ही एक विधेयक पेश किया गया।
इस विधेयक के तहत, तत्काल तीन तलाक के माध्यम से तलाक देना अवैध होगा और इसके लिए पति के लिए तीन साल की जेल की सजा होगी। प्रसाद ने इन आशंकाओं को खारिज कर दिया था कि प्रस्तावित कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है और दावा किया कि मुकदमे से पहले जमानत के प्रावधान सहित कुछ सुरक्षा उपायों को इसमें रखा गया है। मंत्री ने कहा था कि पत्नी की सुनवाई के बाद मजिस्ट्रेट को जमानत देने की अनुमति देने का प्रावधान जोड़ा गया है।
मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए आज का दिन ऐतिहासिक होने जा रहा है.
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हाल ही में राज्यसभा में विपक्षी दल के नेताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने संसदीय स्थायी और प्रवर समितियों को समीक्षा के लिए भेजे बगैर जल्दबाजी में कई कानून पारित करवाए हैं। आश्चर्यजनक है कि विपक्ष को इसबात पर आपत्ति है कि संसद अधिक कानून लाकर अपने समय का समुचित उपयोग कर रही है और सदन का वर्तमान सत्र पिछले अन्य सत्रों के मुकाबले ज्यादा सार्थक और उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
कानून बनाना और पहले से बने कानूनों में जरूरत के अनुरूप संशोधन करना, संसद का प्रमुख काम है। अब यह समझ से परे है कि यदि संसद ठीक से ढंग अपने मूल कार्य को करते हुए कानून बना रही है अथवा संशोधन कर रही है तो इससे किसी दल को भला क्या समस्या हो सकती है?
राज्यसभा में विधेयकों को संसदीय समितियों को नहीं भेजने तथा उसकी जांच को लेकर विपक्षी दलों द्वारा जो आरोप लगाये जा रहे हैं, वह पूरी तरह से निराधार और तथ्यों से परे हैं। सही तथ्य यह है कि यूपीए सरकार ने वर्ष 2009 से 2014 तक राज्यसभा में केवल पांच विधेयकों को संसद की प्रवर समिति को भेजा था, जबकि एनडीए सरकार ने वर्ष 2014 से 2019 के बीच राज्यसभा में संसद की प्रवर समिति को कुल 17 विधेयक समीक्षा के लिए भेजे हैं। इससे साफ़ होता है कि विधेयकों को संसद की समितियों के पास नहीं भेजने को लेकर विपक्ष का आरोप पूरी तरह से तथ्यहीन है।
आज जो लोग राज्यसभा सत्र के दौरान संसदीय गतिविधियों के दौरान चर्चाओं और ध्यानाकर्षण प्रस्तावों को बाधित कर रहे हैं, वही लोग आज सदन में सुचारू ढंग से हो रहे कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं।
संसद के कामकाज के बारे में निराधार टिप्पणी करने वालों को स्वयं से यह सवाल करना चाहिए कि आखिर मानसून सत्र 2015, बजट सत्र 2018, शीतकालीन सत्र 2018 और अंतरिम बजट सत्र 2019 में कामकाज की गति क्यों ठप जैसी हो गयी थी? हैरानी की बात है कि सदन में सकारात्मक रुख के साथ बहस और चर्चा करने की बजाय अनेक अवसरों पर गतिरोध पैदा करने वाले आज इसबात पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि सदन का प्रदर्शन अच्छा क्यों हो रहा है!
यह संसदीय परंपरा का ही हिस्सा रहा है कि केंद्र सरकार के किसी भी संस्थान को सशक्त करने से जुड़े आमूलचूल संशोधन और प्रावधान को प्रवर समिति नहीं भेजा जाता था। यह ठीक है कि प्रवर समितियों को विधेयक भेजना सदन की प्रक्रिया का हिस्सा रहा है, किन्तु यह भी सच है कि ऐसा विधेयक के लिए अनिवार्य नहीं है। कभी-कभी प्रवर समितियां कानून में फेरबदल करने की सलाह देती रही हैं और इसके परिणामस्वरूप कुछ विधेयकों में उन सिफारिशों को लागू भी किया जाता रहा है।
यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य है जिसकी अनदेखी हम नहीं कर सकते हैं, कुछ विधेयकों पर प्रवर समितियों में विचार होने के बावजूद सदन का सत्र नहीं होने की वजह से पारित नहीं हो पाते हैं। इस कारण उन विधेयकों को दोबारा सदन पटल पर रखना पड़ता है या सदन में लाया जाता है। इस तरह के विधेयकों में ज्यादातर वे हैं जो लोकसभा द्वारा पारित भी हुए तथा स्थायी समिति द्वारा उन्हें अनुमोदित भी किया गया था, लेकिन उन विधेयकों को लैप्स होने के कारण सदन में वापस लाना पड़ा। उदाहरण के लिए द मोटर व्हीकल्स (अमेंडमेंट) बिल 2019, जिसकी समीक्षा पहले स्टैंडिंग कमेटी द्वारा की गयी, फिर लोकसभा द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद राज्यसभा ने इस बिल को प्रवर समिति के पास भेज दिया था, लेकिन लैप्स होने के कारण इसे फिर से लोकसभा में लाना पड़ा। इसी तरह ट्रिपल तलाक बिल में विपक्ष के सुझाव पर संशोधन करके दो बार इसे लोकसभा द्वारा पारित किया गया है। चूँकि इसे राज्यसभा में यह दो बार पारित नहीं हो सका अंत: इसे फिर तीसरी लोकसभा में पारित कराना पड़ा है।
ऐसे अनेक विधेयक हैं जिनपर या तो प्रवर समिति या स्थायी समिति में विचार हो चुका है और इन्हें राज्यसभा द्वारा अभी पारित होना है: मसलन, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2019, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019, वेतन संहिता 2019, अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2019 तथा कंपनी संशोधन विधेयक 2019.
पिछले संसदीय सत्रों की तुलना में वर्तमान सत्र कानून के अधिनियमन के लिहाज से अधिक प्रभावी रहा है। यह सत्र संसद के सामान्य समय अवधि के मुकाबले अधिक कामकाज के लिहाज से अधिक उपयोगी भी रहा है और कई बार सदन की कार्यवाही सायंकाल 6 बजे से अधिक भी चली है। इस सत्र में विधेयकों के पारित होने के अलावा कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक चर्चा भी हुई है, शून्यकाल और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से सार्वजनिक महत्व के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी सदन में चर्चा हुई है। इन सबके अतिरिक्त इसबार के सत्र के कामकाज में कई मुद्दों से जुड़े निजी प्रस्ताव और सदस्यों के निजी बिल भी शामिल हैं। इस सत्र में प्रश्नकाल भी सार्थक रहा है जो कि सरकार की जवाबदेही के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गौर करने वाला महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि हाल के पांच सत्रों में से चार सत्र बर्बाद चले गए, इसके बावजूद एनडीए सरकार के दौरान 2014 से 2019 के मध्य कम समय के लिए अवधि की जो चर्चाएँ हुईं उनकी कुल संख्या 29 थी। यह वर्ष 2009 से 2014 के दौरान यूपीए सरकार की 27 चर्चाओं से अधिक है।
संसद की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी द्वारा सदन के कामकाज को अंतिम रूप दिया जाता है, जिसमें सभी दलों का प्रतिनिधित्व होता है और सभी विधेयकों को उसके आवंटित समय के अनुसार उपरोक्त समिति द्वारा पारित होने के बाद सूचीबद्ध किया जाता है। यह महत्वपूर्ण है कि लंबे समय के बाद लांग ऑवर चर्चाएँ सदन में फिर से होने लगी हैं। ऐसा तब हुआ है जब व्यवधानों और अनावश्यक हस्तक्षेपों के कारण संसदीय सत्र अनियमित रहे हैं।
कानून बनाना संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है और विपक्ष की रचनात्मक प्रतिक्रिया और सार्थक हस्तक्षेप इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन केवल विरोध के लिए विपक्ष को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है। विपक्ष को यह समझने की आवश्यकता है कि किसी भी विधेयक के संबंध में सहमति-असहमति की प्रतिक्रिया स्वीकार्य है, परंतु अनावश्यक बाधा उत्पन्न करना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। विपक्ष को अपनी भूमिका के महत्व का एहसास करने और रचनात्मक विपक्ष के रूप में कार्य करते हुए लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में समझदारी से काम करने की आवश्यकता है। संसदीय कामकाज के लिहाज से यह उत्साहजनक है कि इस सत्र के दौरान सदन का कामकाज पहले की किसी भी अन्य सरकारों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से पूरा हो रहा है।
( लेखक – भूपेंद्र यादव , राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। इन्होने राज्यसभा में कामकाज को लेकर विरोधी दलों की आचोलना पर तीखा हमला बोलते हुए ब्लॉग लिखा है। )